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________________ ६] जैन तीर्थवादर्शक | तरहका सुभीता है । रास्ते में रत्नगढ़ ( खेड़ी ) अरसीगोली ग्राम आता है। रत्नग में एक दि० जैन मंदिर तथा ८ जैनियोंके घर हैं। यहांसे बिनोलिया आदिका आगे कच्ची सड़क पहाड़ी रास्ता है सो पूछकर जाना चाहिये। यहांतक तांगा मामूली हर समय आते आते हैं । ( ४ ) बिजोलिया ग्राम ( पार्श्वनाथ ) | यह ग्राम छोटा है परन्तु राजासा०का होने से अच्छा है । २ दि० जैन मंदिर व ६० घर जैनियोंके हैं। यहां पर भाई हीरालालजी कामदार बड़े सज्जन व्यक्ति हैं। गांवसे १ मीलकी दूरीपर अतिशय क्षेत्र बिजोलिया है। अतिशयक्षेत्र बिजोलियाका पार्श्वनाथ भी नाम है। यहां पर जंगलमें ? कोट खिंचा हुआ है। जिसमें ३ क्षत्री, १ शिखरवंद, १ बहुत बड़ा कुंड और आसपास में मैदान है । और कोटके बाहरी भागमें रमणीक सुन्दर जंगल है, तथा पास में एक नदी भी वहती है। बड़े२ पत्थरोंकी चट्टानें रमणीक और सुन्दर मालूम पड़ती हैं। मानो यह बड़ा भाग पुण्यक्षेत्र मुनीश्व रोक ध्यान करनेका स्थान है । इस पुण्य क्षेत्रको देखकर लौट जानेका भी भाव नहीं होता है । यहां प्राचीनकालमें बडे२ मुनीश्वर ध्यान करते थे | यहांपर एक चट्टान के ऊपर कोटके बाहर संस्कृत में श्री शिखरमहात्म्य शस्त्र खुदा हुआ है । और भीतर एक चट्टानपर एक राजा सा०का इतिहास खुदा हुआ है । ऊपर कहे हुए क्षत्रियोंके मंदिर मे से १ जहागा, १ मानस्तंम्भ है। जिसपर ४ प्रतिमा और कनाड़ी लिपिका शिलालेख है। यक्ष-यक्षाणीकी २ मूर्ति हैं, मंदिर में एक छोटीसी घुमटी है, प्रतिमा नहीं है। इस
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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