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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [५ था। जिससे उसे हमारों रुपयों का धन और प्रतिमा इसी चरणपादुकाकी जमीनसे निकलीं थीं। उस धनसे उस भीलने यह मंदिर बनवाया । और वहींसे निकली हुई उस मूर्ति की मूलनायक केशरियानीकी प्रतिमाको विरानमान करदी। और पीछे यह ग्राम वसाया था । इमलिये इसको धुनेव और मूर्तिको धुले बाबाबा बोलते हैं। यहांपर हर साल चैत्र मासमें मेला भरता है जिसमें हजारों लोग इकट्ठे होते हैं। यहांसे केशरियानीकी यात्रा करके फिर वापिस उदयपुर आना चाहिये । फिर रेलसे यात्रियों को अधिक देखने या दर्शनोंकी इच्छा हो तो रतलामके पहिले रास्ते में चितोड़गढ़, नीमच, मन्दमौर, प्रताबगढ़, रतलाम आदि शहर पड़ने हैं सो उतर नाना चाहिये । इन्हीं का हाल नीचे क्रमवार पढ़ लीजियेगा । १-चितोडगढ़का हाल आगे लिखा है सो देखलें । २-नीमच-अच्छा शहर है, एक दि० नैन मंदिर है और कुछ घर नैनियों के भी हैं । म्टेशनसे ग्राम १ मील है। नीमचमे तांगा, मोटर आदि सवारी लेकर अतिशयक्षेत्र बिनोलिया नी तथा चूलेश्वरनी जाना चाहिये और फिर लौटकर नीमच आना चाहिये। उक्त दोनों क्षेत्रों को न नेका राम्ता एक है और इसी लाईनमें भिलवाडा स्टेशन चित्तौडगढ़ सीराबाद के बीच आता है। भीलवाडा बड़ा शहर है । दि. नैनियोके बहुत घर हैं, ४ मंदिर भी हैं, यहांपर पक्की कलईके वर्तन ग्लासादि बहुत विकते हैं। सो यहांसे भी माना-आना होता है। परन्तु यहांका रास्ता कचा और खराब है। सवारी भी नहीं मिलती है और नीमक्से जाने-मानेसे सवारी हसत कमी किराये में मिलती है। पकी सरकी, रास्ने हर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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