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________________ १९८ ] जैन तीर्थयात्रादर्शक | बाद मुझे निकालकर बैठा देना। इस प्रकार कहकर निश्चित किया । फिर सबेरे मिलकर सब पंचोंने वैसा ही किया । भौहरा बनवाकर छ महिना भगवानको गर्दन बांधकर रख दिया । वह भौहरा मंदि - रमें मौजूद है । फिर छ माह बाद निकालकर देखी तो गर्दन 1 पहिले जैसी मजबूत है । फिर होम विधान करके शुभ मुहूर्त में 1 आसपास के लोगोंको बुलाकर बिराजान कर दिया । जबसे यह अतिशय क्षेत्र प्रगट हुआ है। आज भी वही कटी गर्दनका निशान दीख रहा है। यहांकी यात्रा करके किसीको जरूरत हो तो औरंगाबाद जाय नहीं तो बैलगाड़ीवालेको बोलकर बीचमें १२ मील ऊपर चकलठाना चला जाय । ( ३३७ ) चीकलठाना स्टेशन | यहांसे मनमाड जानेवालोंको मनमाड जाना चाहिये । नहीं तो पैसींजरगाड़ी से २ = ) देकर मीरग्वेरका टिकट लेना चाहिये । यह स्टेशन पणी और पूना के बीच में है । बीचमें पर्मणी हिन्दु तीर्थं पड़ता है । अगर देखना हो तो पर्भणी उतर पड़े । ( ३३८ ) पर्मणी । 1 स्टेशन के नजदीक शहर बड़ा रमणीक है । नदीके घाट, किला मंदिर प्राचीन चीजें देखने काबिल हैं। यहां पर ब्राह्मण पंडा लोग बहुत रहते हैं । पिंडदान, गंगास्नान आदि करते हैं । यहांपर सब सामान मिलता है । कुछ घर दि० जैनियोंके हैं । १ मंदिर यहां पर बहुत प्राचीन है। यहांसे लौटकर मीरखेट उत्तर पड़े । टिकट =) लगता है। मीरखेट- यहांसे मजूर करके १९ ॥ मील दूर उत्तरकी तरफ पीपरी ग्राम जाना चाहिये । पीपरीगांव - यह
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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