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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९७ तरफ मंदिर परिक्रमा सहित बना हुआ है। मंदिरमें नेमिनाथम्बा. मीकी प्रतिमा बहुत ही मनोज्ञ है । यह मंदिर भी औरंगाबादके भाईयोंके निम्मे है। यह रचना भी एरोदा मी अपूर्व है । यहांकी यात्रा करके बीचमें शहर बाजार देखता हुमा धर्मशालामें भानाय । फिर यहांकी प्राचीन चीन देखना हो तो देखरें । यह शहर लंबा चौड़ा पुराना खंडहर दशामें है। बादशाही राज्य है । ५) में बैलगाडी आने-जानेको करके अचनेरा जाना चाहिये । २० नोक गम्ता कच्चा-पक्का पड़ना है । (३३५) श्री अचनेग पार्श्वनाथ अनिशयक्षेत्र । यह ग्राम प्राचीन मामूली है । यहां पर धर्मशाला व १ मंदिर है। जिसमें बहुत प्राचीन प्रतिमा हैं । कुछ नियों के घा हैं। मेला भरता है। मंदिग्में । प्राचीन डोटीमी पापाणकी पार्श्वनाथकी पतिमा है । यहां बहुत लोग बोल कवल चढ़ाने आने हैं। (३३६) अचनेगके अतिशय । किमी दिन एक रनम्वला स्त्री मंदिरमें दर्शनों को आगई थी । उसको देख कर स्वयं प्रनिमानीकी गर्दन टूट गई थी। और मंदिरमें भी उड़कर उम बाईपर टूट पटी । सो बाई घरपर चली गई। यह खबर सुनकर पंच लोग मंदिर में आये । देवकर बडा दुःख हुआ। फिर दृमरी प्रतिमा मंदिरजीमें लाकर विगनमान करने का विचार किया । रात्रिमें एक मेठको म्बन हुआ कि यहांपर मेरे मिवाय दृमरी प्रतिमा नहीं बैठ सकेगी। अच्छे गुड़की लपसी बनाकर मेरा सेक करो। फिर गर्दनके बीचमें लपमी रखकर और कपड़ेसे बांधकर जमीनमें ६ महिनाके लिये रखदो । छह माहके
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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