SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । णपादुका हैं । यह स्थान बहुत प्राचीन पूज्यनीक है । धर्मशालाके बाहर एक तरफ शहर है । पीछे गंगा नदी वहती है । गंगा नाला कहते हैं। यहांका दर्शन करके नाथनगर आनावे । फिर यहांसे -) सवारीमें भागलपुर आने-जाते हैं। और रेलमें सिर्फ -) ही लगता है। (२१८) भागलपुर। स्टेशनसे थोड़ी दृर गाड़ीके सामने आधी मीलके फासलेपर दि० जैन धर्मशाला, कुआ, और एक मंदिरमें तीन मंदिर सामिल हैं । प्रतिमा वासुपूज्य भगवानकी विगनमान है। यह प्रतिमा बहुत प्राचीन है । यहांका भंडार भी अलहदा है। भागलपुर उतरनेसे भी नाथनगर तथा चंपानालाकी यात्रा करके लौटकर भागलपुर आजावे । अगर उधर उनरें तो इधरकी यात्रा करके उघरको लौट जावे । भागलपुर शहर अच्छा है । १० घर दि० नैनियों के हैं । बाजार अच्छा है । माल वगैरह सम निलता है । यहांसे एक लाईन (ल्लूप) जाकर कलकत्ता मिलती है । एक लाईन कटीहार जाकर मिलती है । एक लाईन नवादा होकर गयानी जाकर मिलती है । सो इमी लाईनसे लम्बीसराय गाड़ी बदलकर मधुपुर जावे। यहांसे गाड़ी बदलकर गिरीड़ी उतर पड़े। फिर शिखरनी जाना चाहिये । मम्मेदशिखरजीसे नाथनगर, भागलपुर आनेका दूसरा रास्ता भी है । बीचमें कीऊल या लक्खीसराय गाड़ी बदलकर भागलपुर आवे । अगर किमीको भागलपुरसे सीधा कलकत्ता जाना हो तो भागलपुरसे सीधा कककत्ता चला जावे। वहांसे लौटकर, मधुपुर, गिरीडी, या गोमोह,
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy