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________________ १०२] जैन तीर्थयात्रादर्शक | गर्भ - जन्म कल्याणक हुए थे । मल्लिनाथ और पार्श्वनाथ भगवानका समोशरण यहांपर आया था। राजा जयकुमार अकंपनादि बड़े२ मोक्षगामी जीव जन्मे थे । यह महान पवित्र पुण्य क्षेत्र है । यहांपर एक बड़ा भारी जंगल है । एक गढ़ और दरवाजा है । भीतर धर्मशाला है। एक मंदिर कुआ हैं । बाहर एक बगीचा है । एक बंगला है | यहांसे एक मील दूर ४ चबूतरा हैं। चरण पादुका भी हैं। यहांकी यात्रा करके लौटकर टिकट हाथरसका लेवे १||) लगता है । फिर गाजियाबाद गाड़ी बदलकर हाथरस उतर जावे। यहांसे किसीको आगे-पीछे जाना हो तो छोटी बाईन कानपुर-मथुरा जाती है। 1 ( १७६ ) भरवारी । स्टेशनसे ग्राम पास है । २ जैनियोंकी दुकान हैं। फिर यहां अलीगढ़, खुर्जा आदि पड़ता है। यहांका हाल ऊपर लिखा है, सो देख लेना चाहिये | हाथरससे टिकिट कानपुरका लेवे, ३ ॥ ) लगता है । छोटी बड़ी लाइनका किराया बरावर लगता है । कानपुर उतरे । 1 ( १७७ ) कानपुर शहर । स्टेशन से १ मील शहर में दि० जैन धर्मशाला है, यहांपर कुआ, टट्टी, बाजार पास है । वैद्यराज कन्हैयालालजीका बड़ा भारी दवाखाना है । शहरमें व्यापार बहुत है, कलकत्ता, बम्बई जैसा होता है | यहां पर सब दिशावरका माल आता है, सब देशके मनुष्य आते जाते हैं। यहांपर दि० जैनियोंके घर बहुत हैं । यहांपर मन्दिर 8 बड़े कीमती हैं। यहां कांचका मन्दिर श्वेताम्बर बहुत बड़
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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