SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - जैन तीर्थयात्रादर्शक । [१०१ व्याधिको मेटनेवाला मीठा पानी निकला । वहांपर गहरा कुआ बनवा दिया गया है । १ धर्मशाला है और प्रतिमाओं के साथ २ सिंहामन, छत्र, रकेबी आदि कुछ उपकरण निकले थे। यहांपर भी मेला भरना शुरू होगया है । सामान की दुकान है, रमणीक जंगल है, यात्री आने जाने रहने हैं, लौटकर फिर स्टेशन मानावे, विकिट =) से पीछे देह ती आनावे । २) का टिकिट लेकर और गाड़ी बदल कर मेग्ट चला जाय । किमीको ग्वे खड़ा गांव देग्वना हो तो देग्वे । ग्वेवडाम २ मन्दिर और बहुन पा दि. नेनियोंके हैं । लौट कर म्टेशन आकर मेग्ठ चला नाय । (१७४ ) मेरठ शहर । म्टेशनसे ? मील दूर कंपोन दरवानाके पास केशरंगनमें दि. जैन धर्मशाला है । शहरमें कुल ६ धर्मशाला हैं, चाहे जहां उतर जाना चाहिये । तोपग्वाना, छावनी सदरबानार और शहरमें ऐसे ४ मन्दिर हैं, च हे नितनेका दर्शन करे । यहां दि नियोंकी अच्छी संख्या है। महादेवका मंदिर, महल, मुरजकुंड, बानार आदि देखना चाहिये। यहांसे १) में तांगा करके हस्तिनागपुर जाना चाहिये । २० मोल पड़ता है । बीचमें दो मोहाना पड़ने है। एक बड़ा मोहानामें राम्तापर १ दि. जैन धर्मशाला है । जाने-आने ठहरना हो तो ठहर नाय । (१७५) श्री हस्तिनापुर अतिशयक्षेत्र । यहांपर भगवान आदिनाथका प्रथम पारणा राना मोमसेन श्रीसेणके यहां हुआ था। देवोंने पंचाश्चर्य किये थे। फिर तीर्थकर, चक्रवर्ती, कामदेव इन तीनों पदोंके धारक शांति, कुंथु, अरहनाथके
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy