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________________ ... . .m.www.mom जैन तीर्थयात्रादर्शक। [८९ दरावाना, तालाव, बाग, बगीचा, गनमहल मादिसे सुशोभित है। जमना, गंगा नामक दो प्राचीन कुंड हैं। अजयगढ़के दरवाजेमें प्रवेश करते ही एक पत्थरमें उकेरी हुई ५० प्रतिमा का दर्शन होता है । भागे थोडी दूर बड़ा गहरा तालाव है । तालावकी दीवालों में बहुत खण्डहर प्रतिमाओंके हैं। जिसमें १ प्रतिमा १५ फीट दूमरी १० फीट उची अग्बंडित कायोत्सगोमन विराजमान हैं। एक बड़ा मानम्तंभ भी है। उसमें हनारों प्रतिमा बनी हुई हैं । यहांसे १॥ मील उपर जंगल में एक स्थान रमणीक है। वहां भी हजारों प्रतिमा विराजमान है । उनको देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। प्राचीन काल में कमे धर्मानुगगी धनाटय थे। उनकी बनवाई हुई ये प्राचीन प्रतिमा है। ग्राममें और भी मंदिर हैं, उनका भी दर्शन करना चा..। फिर लौटकर बनहरा नाना चाहिये। बोचमें एक मड़क फूट कर र जाती है। मो पूछकर ग्व नहरा नावे । उपरका मब दाल देवकर तीनों हो गम्तोंमे खनहरा जाना चाहिये। १४) अनियक्षेत्र ग्वजहरा। अभी यह ग्राम छोटामा है। ग्रामके पूर्वकी नरफ जंगलमें चारों तरफ कोट लगा हुआ है। भीतर धर्मशाला, वावडी, कुवा है । और कोट के चारों तरफ बहुत ग्बडित प्रतिमा हैं। एक बड़ा भारी मंदिर है । बीचके मदिरजीमें कायोत्सर्गामन मूलनायक श्री शांतिनाथकी प्रतिमा २० हाथ उ.ची हैं। और गढ़के चारों ओर भी बहुत प्रतिमा हैं। बाहर मदानमें लाखों रुपयाकी कीमतके प्राचीन ढंगके छत्र, चमर, सिंहामन, भामण्डल और निनसेवी शासनदेवताओंसे युक्त हनारों प्रतिमाएं. उन १४ मंदिरोंमें विराजमान
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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