SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१] जैन तीर्थयात्रादर्शक। नेसे लोग हजारोंकी संख्या दर्शनोंको आने लगे। फिर इसी प्रतिमा के प्रभावसे शहरके बोचमें मंदिर आगया। फिर कालदोपके प्रभावसे वस्ती घट गई, मंदिर जीर्ण होगया। इस कारणसे प्रतिमाको यहांके मंदिरमें विराजमान कर दिया । मो यह मंदिर भी बहुत जीर्ण होगया है। दर्शन करके फिर आकोला आना चाहिये। टिकट ॥) का लेकर-फिर मूर्तिनापुर आवे । (१०२) मूर्तिजापुर । ___ म्टेशनसे २ मीक गहर है। तांगावाला 1) सवारीमें लेजाता है। यहांपर १ दि. जैन मंदिर व जैनियोंके २० घर हैं । शहर ठीक है। यहांसे ३ रेलवे लाईन जाती है। १ अननग्राम एलिचपुर, २ नागपुर, ३ कारंजा। अगर किसीको पहिले कारंजा जाना हो तो जावे । वहांसे लौटकर मूर्तिजापुर आवे । पलेचपुर जावे । और कारंजा नहीं जाना हो तो परतवाड़ा एलेचपुर जाना चाहिये। (१०१) कारंजा (अतिशय क्षेत्र)। स्टेशनके सामने महावीर ब्रह्मचर्याश्रम बना हुआ है। जो यात्रियोंकी इच्छा हो तो यहींपर ठहर जावें, अगर इच्छा नहीं हो तो शहरकी धर्मशालाओंमें ठहरें। 4) सवारीमें तांगावाला लेनाता है । शहरकी धर्मशालामें कुआ मादिका आराम है। वहीं पर ३ मंदिर भी हैं। जहांपर इच्छा हो वहीपर ठहर जावें। कारंजा शहर बहुत बढ़िया है। यहांपर व्यापार बहुत होता है। ३०० घर दि. जैनियोंके हैं। वे लोग भी धनाढ्य हैं। १ काठासंघ, २ सेमगणगच्छ, ३ मुलसंघ इन तीन संघोंके तीनों मट्टारककी ३ गहियां प्राचीन हैं। और ३ मंदिर भी बड़े विशाल हैं। जिन्होंन
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy