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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक । ऐसा १ चार मंजिलका मंदिर जमीनमें बना हुआ है। इस मंदिरका बाहरी दरवाजा छोटासा है। भीतरी बड़ा है । २ खंड जमीनमें और २ उपर हैं। भोहराके भीतर एक मंनिलमें क्षेत्रपालकी स्थापना है । बीचके मंनिलमें श्री पाश्वनाथकी प्रतिमा बहुत प्राचीन हैं। पहिले कुछ नमीनसे ऊंचे रहती थी, अब कुछ नीचे है । इमलिये अंतरीक्षनी कहते हैं । और भतिशयवान होनेसे अतिशयक्षेत्र भी कहते हैं। यहां हजारों यात्री घनी पूना लेकर माने हैं । दर्शन करके शिवपुर जाते हैं । यहां दो दालानमें ३ वेदियां और हैं, जिनमें बहुत प्रतिमा विराजमान हैं। यहां केशर फूल दुग्धादि बहुन चढ़ता है । घोका दीपक दिन रात हमेशा जलता रहता है। यहां खाने पीने व पूनाका सामान सब मिलता है। यहांसे माधमील एक बगीचा है । वहींसे ये भगवान प्रगट होकर पधारे हैं। वहां मंदिर, बगीचा, चरण पादुका है । सब दर्शन करना चाहिये। फिर यहांमे एक कच्चो राम्ता १० मील बामीमको जाती है । परन्तु यात्रियों को लौट कर फिर आकोला आना चाहिये । (१०१) बगीचा सिरपुर । पहिले यहीं पर्श्वनाथ स्वामीकी मूर्ति इस बगीचेमें बहुत काल तक जमीन के भीतर विराजमान रही । फिर एक आदमीको स्वम दिया, उसीसे प्रतिमा बाहर निकाली गई । जिस स्थानपरसे प्रतिमा निकली थी वहांपर एक चबूतरा बनवाकर चरणपादुका स्थापित करदी थीं। पहले वहांपर सिरपुर बड़ा शहर था। सो बगीचेके पास ही मंदिर बनवाकर प्रतिमा विराजमान कर दी थी। फिर हमेशा लोग दर्शन पूजन कहते रहे । नयार चमत्कार दिख.
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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