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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [५५ श्वेताम्बर मंदिर व पर बहुत हैं, शहर बहुत बड़ा है, सामान सभी. तरहका मिलता है। यहां दूसरी धर्मशाला भाड़ेवालोंकी, तीसरी धर्मशाला कुंवा हिन्दू लोगोंके ठहरनेको विना भाड़ेकी पासमें है, बाजार भी नजदीक है। स्टेशन के पास बहुत लंबा चौड़ा राजाका राणी बाग है, उसमें हजारों रचना देखने योग्य हैं। कचहरी बाग, राजमहल, बानारादि बहुत बढ़िया चीनें देखनी चाहिये। बड़ौदासे महमदावादका १) टिकटका, पावागढ़ चांपानेर रोड़का ) टिकटका लगता है । चाहे निघर चले जाओ। आगे चाम्पानेर गाड़ी बदलनी पड़ती है । पावागढ़ को छोटी लाइनकी गाड़ी जाती है। (९०) पावागढ़ सिद्धक्षेत्र । स्टेशनसे आप मोल दि. जैन धर्मशाला व मंदिर है । बाजार डाकखाना ननदीक है। वहांपर उतरे। स्टेशन ऊपर कोठीका एक जमादार गाड़ीके समयपर खड़ा रहता है । सो यात्रियोंको पूछ लेना चाहिये । और मजदूर भी मिलते हैं । पावागढ़ जमीनसे लगाकर ३ मील पहाइतक बड़ा भारी शहर वसा था नो कोट, परकोटा, राजदरबार, तोपखाना, भौंहरा, तालाब, कुवा आदि चीनोंसे सुशोभित था। जिसका वर्णन कहांतक किया जाय । प्रत्यक देखनेसे वही मानन्द मासकता है। कुछ पहिले यहां मुसलमान बादशाहका राज्य रहा था सो मसजिद भी देखने योग्य हैं । फिर पहाड़, सड़क, गढ़, दरवाना, देखते हुए २॥ मील पर्वतके ऊपर जावे । यहांकी चढ़ाई बहुत सरल है। पहारके अन्तमें एक दिगम्बर जैन मंदिर खण्डित है। प्रतिमा विराजमान है। यहां एक छत्री रामचंद्रनीके पुत्र लवणांकुखकी चरण पादुका
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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