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________________ ५४] - जैन तीर्थयात्रादर्शक। बच्छा संग्रह है। छोटे बड़े पांच हजार धर्मशास्त्र, वैद्यक, ज्योतिष, छंद, व्याकरण, गायन, मंत्र, यंत्रादिक अनेक चित्रकारी सहित बहुत सुन्दर अक्षरोंमें लिखे हुए शास्त्र बिराजमान हैं। उनका दर्शन करके लौटकर स्टेशन आवे। फिर २) टिकटका देकर वडालीका टिकट लेवे । ईडरमें श्वेताम्बर घर और मंदिर भी हैं। (८८) वडाली। स्टेशनसे १ मील ग्राम है । पहिले यह ग्राम बहुत बड़ा शहर था । अब छोटा रह गया है । पहिले यहांपर १०० घर दि. जैनके थे । अब कुछ नहीं है ! मंदिरका कार्य एक श्वेतांबर भाईके हाथ में है, मंदिर बहुत बड़ा चौवीस देहरीका है। १ वावड़ी १ धर्मशाला है । पहिले यहां भगवान पार्श्वनाथके शरीरसे अमृत (मीठा पानी) निकलता था । और अनेक प्रकारके अतिशय होते थे । हालमें भी इन पार्श्वनाथका बहुत अतिशय है। हजारों यात्री लोग रोल कबोल चढ़ाने व यात्रा करनेको आते हैं। यहांपर मेला भरता है। मंदिरमें और प्रतिमा हैं। ग्राममें पूजा, खानेका सामान सब मिलता है । ग्राम ठीक है । श्वेतांबर घर बहुत हैं । यहाँकी यात्रा करके स्टेशन भावे, फिर १।) देकर अहमदाबादका टिकट लेना चाहिये । अहमदावादसे पावागढ़ या चांपानेरका १६) लगता है । बीचमे गाड़ी बड़ौदामे व चांपानेर रोडपर बदलती है। (८९ ) बड़ौदा शहर । स्टेशनसे २ मीलपर वाडीकी दि. धर्मशालामें उतरे । इक्काबाला ।) सवारी लेकर उतार देता है, यहां दि० का कुछ घर क. मंदिर है। पावागढ़का भंडार मादि कारखाना यहांपर नयी पोलमें है।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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