SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थाद्वाद ३२३ महावीर ने केवलज्ञान होने के पहले चित्र-विचित्र पंख वाले एक बड़े पुस्कोकिल को स्वप्न में देखा । इस स्वप्न का विश्लेषण करने पर स्याद्वाद फलित हुआ। पूस्कोकिल के चित्रविचित्र पंख अनेकान्तवाद के प्रतीक हैं । जिस प्रकार जैनदर्शन में वस्तु की अनेकरूपता की स्थापना स्याद्वाद के आधार पर की गई, उसी प्रकार वौद्ध दर्शन में विभज्यवाद के नाम पर इसी प्रकार का अंकुर प्रस्फुटित हुया, किन्तु उचित मात्रा में पानी और हवा न मिलने के कारण वह मुरझा गया और अन्त में नष्ट हो गया। स्याद्वाद को समयसमय पर उपयुक्त सामग्री मिलती रही; जिससे वह ग्राज दिन तक वरावर बढ़ता रहा । भेदाभेदवाद, सदसद्वाद, नित्यानित्यवाद, निर्वचनीयानिर्वचनीयवाद, एकानेकवाद, सदसत्कार्यवाद आदि जितने भी दार्शनिक वाद हैं सबका आधार स्याद्वाद है, जैन दर्शन के प्राचार्यों ने इस सिद्धान्त की स्थापना का युक्तिसंगत प्रयत्न किया। आगमों में इसका काफी विकास दिखाई देता हैं । जैनदर्शन में स्याद्वाद का इतना अधिक महत्त्व है कि आज स्याद्वाद जैनदर्शन का पर्याय बन गया है। जैनदर्शन का अर्थ स्याद्वाद के रूप में लिया जाता है । जहाँ जैनदर्शन का नाम आता है, अन्य सिद्धान्त एक ओर रह जाते हैं और स्याद्वाद या अनेकान्तवाद याद आ जाता है । वास्तव में स्याद्वाद जैन दर्शन का प्राण है । जैन आचार्यों के सारे दार्शनिक चिन्तन का आधार स्याद्वाद है ।
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy