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________________ मानवाद और प्रमाणशास्त्र २१३ निर्वृत्ति और उपकरण । इन्द्रियों की विशिष्ट आकृतियाँ निवृत्ति द्रव्येन्द्रिय हैं । निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय की बाह्य और ग्राभ्यन्तरिक पौद्गलिक शक्ति, जिसके विना प्राकृति के होते हुए भी ज्ञान होना सम्भव नहीं, उपकरण द्रव्येन्द्रिय हैं। भावेन्द्रिय भी लब्धि और उपयोग रूप में दो प्रकार की है। ज्ञानावरण कर्म आदि के क्षयोपशम से प्राप्त होने वाली यात्मिक शक्ति-विशेष लब्धि है। लब्धि प्राप्त होने पर प्रात्मा एक विशेष प्रकार का व्यापार करती है । यही व्यापार उपयोग है। स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श है। रसनेन्द्रिय का विषय रस है । घ्राणेन्द्रिय का विपय गन्ध है। चक्षुरिन्द्रिय का विपय वर्ण है । श्रोत्रन्द्रिय का विपय शब्द है। मन : प्रत्येक इन्द्रिय का भिन्न-भिन्न विषय है। एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय के विषय का ग्रहण नहीं कर सकती । मन एक ऐसी सूक्ष्म इन्द्रिय है, जो सभी इन्द्रियों के सभी विपयों का ग्रहण कर सकता है। इसलिए इसे सर्वार्थग्राही इन्द्रिय कहते हैं। इसको अनिन्द्रिय इसलिए कहा जाता है कि यह अत्यन्त सूक्ष्म है। अनिन्द्रिय का अर्थ इन्द्रिय का अभाव नहीं, अपितु ईपत् इन्द्रिय है । जैसे अनुदरा कन्या का अर्थ विना उदरवाली लड़की नही होता अपितु ऐसी लड़की होता है जिसका उदर गर्भभार सहन करने में असमर्थ है। उसी प्रकार चक्षुरादि के समान प्रतिनियत देश, विपय अवस्थान का प्रभाव होने से मन को अनिन्द्रिय कहते हैं। इसका नाम अन्तःकरण भी है, क्योंकि इसका अन्य इन्द्रियों की तरह कोई बाह्य आकार नहीं है । इसे सूक्ष्म इन्द्रिय इसलिए कहते हैं कि यह अन्य:न्द्रियों की अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म है। इन्द्रियों की तरह मन भी दो प्रकार का है-द्रव्यमन और भावमन । द्रव्यमन पोद्गलिक है । भावमन लब्धि और उपयोग रूप से दो प्रकार का है। १-- प्रगामीमामा १२॥२१-२३ सत्रहवं मनः । --वही ११२।२४
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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