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________________ ज्ञानवाद और प्रमाणशास्त्र २०६ मालूम होता है । नन्दीसूत्र के अनुसार इस भूमिका का सार यह है : ज्ञान - ग्राभिनिवोधिक श्रुत अवधि मन:पर्यय केवल प्रत्यक्ष परोक्ष इन्द्रिय प्रत्यक्ष नोइन्द्रियप्रत्यक्ष प्राभिनिवोधिक १-थोवेन्द्रिय प्रत्यक्ष १-अवधि २-चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष २-मन:पर्यय ३-घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष ३-केवल ४-रसनेन्द्रिय प्रत्यक्ष ५-स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष श्रुतनिःसृत अश्रुतनि:सृत । ईहा अवाय अवग्रह धारणा व्यंजनावग्रह अर्थावग्रह औत्पत्तिकी वैनयिकी कर्मजा पारिणामिकी उपर्युक्त तीनों भूमिकाओं को देखने से पता लगता है कि प्रथम भूमिका में दार्शनिक पुट का अभाव है । यह भूमिका प्राचीन परम्परा
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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