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________________ १८८ जैन-दर्शन जो पुद्गल स्कन्ध अचाक्षुष है वह भेद और संघात से चाक्षुष होता है । जब किसी स्कन्ध में सूक्ष्मत्व की निवृति होकर स्थूलत्व की उत्पत्ति होती है तब कुछ नए परमाणु उस स्कन्ध में अवश्य मिलते हैं। इतना ही नहीं अपितु कुछ परमारण उस स्कन्ध में से अलग भी हो जाते हैं । मिलना और अलग होना, यही संघात और भेद है। इसीलिए यह कहा गया है कि अचाक्षुष से चाक्षुष होने के लिए भेद और संघात दोनों अनिवार्य हैं। पुद्गल का कार्य : स्थूल-स्थूल, स्थूल, स्थूल सूक्ष्मादि भेदों का सामान्य परिचय दिया जा चुका है । यहाँ पुद्गल के कुछ विशिष्ट कार्यों का परिचय देने का प्रयत्न करेंगे । वे कार्य हैं-शब्द, बन्ध, सौम्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, प्रातप और उद्द्योत'। शब्द : वैशेषिक आदि भारतीय दर्शन शब्द को आकाश का गुण मानते हैं। सांख्य शब्द-तन्मात्रा से आकाश की उत्पत्ति मानता है । जैनदर्शन इन दोनों मान्यताओं को मिथ्या सिद्ध करता है। आकाश पौद्गलिक नहीं है । अतः शब्द, जो कि पौद्गलिक है-इन्द्रियों का विषय बनता है, आकाश से कैसे उत्पन्न हो सकता है ? शब्द-तन्मात्रा से भी अाकाश की उत्पत्ति नहीं हो सकती; क्योंकि शब्द पौद्गलिक है, अतः शब्द-तन्मात्रा भी पौद्गलिक ही होनी चाहिए और यदि शब्द तन्मात्रा पौद्गलिक है तो उससे उत्पन्न होने वाला आकाश भी पौद्गलिक होना चाहिए, किन्तु आकाश पौद्गलिक नहीं है अतः शब्द तन्मात्रा से आकाश उत्पन्न नहीं हो सकता। जब एक पौद्गलिक . अवयव का दूसरे पौद्गलिक अवयव से संघर्ष होता है तव शब्द उत्पन्न होता है। अकेला स्कन्ध शब्द उत्पन्न नहीं कर सकता तब अकेला परमाणु शब्द कैसे पैदा कर सकता है ? 'परमाणु का रूप अत्यन्त सूक्ष्म होता है, वह पृथ्वी, अप, तेज और वायु का कारण है और १- शब्दबन्धसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च । -~~~तत्त्वार्थ सूत्र ५।२४
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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