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________________ ११२ जैन-दर्शन अलंकार, काव्य, चरित्र, न्याय आदि प्रत्येक विषय पर विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं । व्याकरण शास्त्र पर उनका ग्रन्थ सिद्धहेमव्याकरण प्रसिद्ध ही है । कोश की दृष्टि से अभिधानचिन्तामणि बहुत महत्वपूर्ण है । छन्द, अलंकार और काव्य पर छन्दोनुशासन, काव्यानुशासन आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। प्रमाग्गशास्त्र पर प्राचार्य हेमचन्द्र का प्रमाणमीमांसा ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इसमें पहले सूत्र हैं और फिर उन पर स्वोपज्ञ व्याख्या है। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सूत्र और व्याख्या दोनों को मिलाकर भी मव्यमकाय है । यह न तो परीक्षामुख और प्रमाणनयतत्त्वालोक जितना संक्षिप्त ही है और न प्रमेयकमलमार्तण्ड और स्याद्वादरत्ताकर जितना विशाल ही है। इसमें न्यायशास्त्र के महत्वपूर्ण प्रश्नों का मध्यम प्रतिपादन है । इस ग्रन्थ को समझने के लिए न्यायशास्त्र की पूर्वभूमिका अत्यन्त आवश्यक है। इस समय यह ग्रन्थ पूर्गा उपलब्ध नहीं है । जिस समय यह पूर्ण उपलब्ध होगा उस समय जैन न्यायशास्त्र के गौरब में बहुत कुछ अभिवृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त हेमचन्द्र की अयोगव्यवच्छेदिका और अन्ययोग व्यवच्छेदिका नामक दो द्वात्रिंशिकाएँ भी हैं। इनमें से अन्ययोगव्यवच्छेदिका पर मल्लिपेगा ने स्याद्वादमंजरी नामक टीका लिखी है, जो शैली और सामग्री दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । हेमचन्द्र की मृत्यु वि० सं० १२२८ में हुई। अन्य दार्शनिक : बारहवीं शताब्दी में हर गान्याचार्य ने न्यायावतार पर स्वोपजटीका सहित वार्तिक लिया। इसमें उन्होंने अकलंक द्वारा स्थापित प्रमागरी भदों का बगदन किया है पीर न्यायावतार की परम्परा को पुनः स्थापित किया है । यह ग्रन्थ पं० दलमुम्ब माल बगिया द्वारा सम्पादिन होरर भारतीय विद्याभवन-बम्बई से सिंधी ग्रन्थमाला में प्रकाशित हमा है। - म्यादादग्नाकर को समझने में मरलना हो, इस दृष्टि से बादी देवमुनि केही शिष्य ग्लानमृति ने जिन्होंने ग्याहादरत्नाकर के लम्बन
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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