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________________ जन-दर्शन और उसका प्राधार १०५ अकलंक ने प्रमाण-व्यवस्था का उपन्यास इस प्रकार किया १-~प्रमाग के दो भेद--(१) प्रत्यक्ष और (२) परोक्ष । २-प्रत्यक्ष के दो भेद--(१) मुख्य और (२) सांव्यवहारिक ३-परोक्ष के पाँच भेद--(१) स्मृति, (५) प्रत्यभिज्ञान, (३) तर्क, (४) अनुमान, (५) पागम । ४-~-प्रत्यभिज्ञान (संज्ञा), तर्क (चिता), अनुमान, (अभिनिवोध), आगम (श्रुत)। ५----मुख्य प्रत्यक्ष के उपभेद:-(१) अवधि, (२) मनःपर्यय, (३) केवल । ६---मांव्यवहारिक प्रत्यक्ष (इंद्रियानिन्द्रिय प्रत्यक्ष)-मतिज्ञान। यह व्यवस्था प्रागमों में भी मिलती है । तत्वार्थमूत्र में भी इसी व्यवस्था का प्रतिपादन है । तत्वार्थ की व्यवस्था यों है: ५-ज्ञान (प्रमाण) के पाँच भेद.--(१) मति, (२) श्रुत, (३) अवधि, (४) मनःपर्यय और (५) केवल । २-~~परोक्ष ज्ञान के दो भेदः-११) मति और (२) श्रुत । ३-~-प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन भेद:-(१) अवधि, (२) मन:पर्यय (३) केवल । ४~मतिज्ञान के दूसरे नाम':-~मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिवोध । ये सब इंद्रियों तथा मनकी सहायता से होते हैं। नन्दीमूत्र की प्रमाण-व्यवस्था में थोड़ा सा परिवर्तन व परिवर्धन है । वह इस प्रकार है ज्ञान दो प्रकार का है:-प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष तीन प्रकार का है:-इन्द्रिय और नो-इन्द्रिय और प्रतिज्ञान। {-दिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ---तत्वायंत्र -
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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