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________________ ७८ जन-दर्शन भारतीय जीवन से विशेष सम्बन्ध नहीं रह गया है । यद्यपि उसका थोड़ा बहुत प्रभाव किसी न किसी रूप में आज भी मौजूद है और आगे भी रहेगा, किन्तु भारतीय जीवन के निर्माण और परिवर्तन में जैन-परम्परा का जो हाथ अतीत में रहा है, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा, वह कुछ विलक्षण है । यद्यपि अाज की प्रचलित जैन विचारधारा, भारत के बाहर अपना प्रभाव न जमा सकी, किन्तु भारतीय विचारधारा और आचार को बदलने में इसने जो महत्त्वपूर्ण काम किया है, वह इस देश के जन-जीवन के इतिहास में बहुत समय तक अमर रहेगा। जैन-परम्परा और बौद्ध-परम्परा श्रमण-संस्कृति के अन्तर्गत हैं. किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि जैन-परम्परा और बौद्ध-परम्परा दोनों एक हैं। जैन-परम्परा जैन-परम्परा है और बौद्ध-परम्परा बौद्धपरम्परा है । श्रमण-परम्परा दोनों में प्रवाहित होने वाली एक सामान्य परम्परा है। श्रमण-परम्परा की दृष्टि से दोनों एक हैं, किन्तु परस्पर की अपेक्षा से दोनों भिन्न हैं । बुद्ध और महावीर दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। बुद्ध की परम्परा अाज बौद्ध -धारा के नाम से प्रसिद्ध है और महावीर की परम्परा जैन-धारा के नाम से प्रसिद्ध है। यह बात हम भारतीयों के लिए विवाद से परे है। हमलोग इन दोनों परम्परामों को भिन्न परम्पराओं के रूप में देखते आए हैं। इसके विरुद्ध कुछ विदेशी विद्वान् यहाँ तक लिखने लग गये थे कि बुद्ध और महावीर एक ही व्यक्ति हैं, क्योंकि जैन और बौद्ध परम्परा की मान्यताओं में बहुत भारी समानता है। प्रो० लासेन आदि की इस मान्यता का खंडन करते हुए प्रो० वेबर ने यह खोज की कि जैनधर्म बौद्धधर्म की एक शाखा-मात्र है। प्रो० याकोबी ने इन दोनों मान्यताओं का खण्डन करते हुए यह सिद्ध किया कि जैन और बौद्ध दोनों सम्प्रदाय स्वतन्त्र हैं। इतना ही नहीं, अपितु जैन सम्प्रदाय बौद्ध सम्प्रदाय से भी प्राचीन है। ज्ञातपुत्र महावीर तो उस सम्प्रदाय के. अन्तिम तीर्थंकर मात्र हैं। इस प्रकार जैन-परम्परा का स्वतन्त्र १-Sacred Books of the East, Vol. 22, Introdu ction, पृ० १८-१६
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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