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________________ J ( १३६.) विचरने लगा । इससे रेवती हारी और उदास होकर जीधर से आईथी उधरही होकर चल दी और अपने घर गई। महाशतक श्रावक सूत्रकी विधिसे ११ प्रतिमा पालते विचरने लगे । इससे उसका शरीर लुहारकी बिना पवन भरी धौंकन कासा निर्मात पोला हो गया। एक समय रातमें धर्म जागरिका जागते हुए उन्हें ऐसा अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि जैसे आनंद श्रावकने सब परिग्रह और चार प्रकार के आहार छोड संधारा किया वैसे मैं भी कल प्रातःकालमें करूं। ऐसा विचार करें उसी के अनुकूल धर्मध्यानमें विचरते हुए, शुभ परिणाम से कर्म क्षय होकर अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। इससे पूर्व और दक्षिण दिशामें लवण समुद्र तक हजार योजनका क्षेत्र दिखने लगा | पश्चिम और उत्तर दिशा में चूल हिमवंत और वर्षधर पर्वत तक तथा नीचे रत्नप्रभा नामकी पहली नरकका लोलुचुय नामका पाथst दिखाई देने लगा । एक समय रेवती गाथापत्नी उपरकी तरह पौधशालामें जा कर महाशतक श्रावकसे बार २ मोहक वचन कह कर भोगकी वांछा करने लगी । इससे महाशतकको क्रोध आ गया और उसने कहा कि " अरे अमार्थित मरण चाहनेवाली रेवती ! तू अवश्य सात दिन रातके भीतर भीतर अलस रोग से मरेगी और आर्तध्यान द्रिध्यान करती हुई असमाधि मरण पावेगी । रत्नप्रभा नरक में लोलचुप पाथडमें पड चौरासी : हजार वर्ष दुःख भोगेगी । " ऐसे वचन सुन कर रेवती डरी और भाग कर घरको आ गई । इसके बाद सात अहोरातमें वह अलस रोग से आर्तध्यान कर मरी और ८४००० वर्षकी आयु से - रत्नभा नरकके लोलुचिय नाम पाथडमें जा उपनी 1.
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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