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________________ (१२६) चंदना करने गया था वैसे ही कुंडकोलिक वन्दना करने गया। धर्मकथा हो चूकनेपर महावीर स्वामी कुंडकोलिकसे कहने लगे--"हे कुंडकोलिक श्रावक ! कल पिछले पहरमें तू अशोकवाडीमें सामायिक लेकर बैठा था। उस समय एक देव तेरे पास प्रकट हुआ और तेरे नामकी अंगुठी और वस्त्रको लेकर पीछा रखकर चल दिया । क्या यह बात सच है ?" कुंडकोलिकने कहा--' हां, महाराज ! सत्य है ।' भगवान महावीर बोले--'धन्य है तुझे । तू कामदेव श्रावककी तरह धर्ममें दृढ रहा। इसके बाद भगवानने बहुत साधु-साध्वीको बुलाकर कहा:-" अहो आर्यो ! कुंडकोलिक गृहस्थी होनेपर भी अन्यतीर्थी और अन्य शासनके देवके भी प्रश्न करने पर न हारा। फिर तुम तो द्वादशांगीके जाननेवाले हो। तुम्हें तो ऐसा होना चाहिये कि अन्यतीर्थीको जीत सको"। सब साधुसाध्वाने उस बातको तहत कहा और विनयपूर्वक प्रशंसा की। यह सुन कर कुंडकोलिया हर्प--संतोपको प्राप्त भया। भगवान महावीरकी उसने प्रदक्षिणा की--वंदना की और जिस दिशासे आया था उस दिशासे होकर घर गया। और महावीर भगवान जनपदमें विहार कर विचरने लगे। ... कुंडकोलियाने १४ वर्ष शीलादि पाले । १५ वर्षमें बडे लडकेको घरका भार दिया, कामदेवकी तरह, और पापधशालामें श्रावककी ११ प्रतिमा स्वीकार की। अन्तमें अणसण करके सुधर्म देवलोकमें अरुणध्वज विमानमें देवता हुआ। वहां चार पल्योपमकी आयु पूरी कर महाविदेह क्षेत्रमें अवतरकर मोक्षमें जायगा।
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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