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________________ आया। उसके नाम वाली अंगुठी और उत्तरीय वस्त्रको कोपसे शिलापट परसे उठाकर धुंघरु बजाता हुआ आकाशमें खडा रहा तथा कहने लगा:-" हे कुंडकोलिक श्रावक ! गोशाला नामक मंखलीपुत्रके धर्ममें उत्थानादि क्रिया, तप, संयम, चारित्र, वळ, पराक्रम, वीर्यके वीना ही कोंका क्षय हो जाता है और मोक्ष मिल जाता है ऐसा कहा है। श्रमण भगवान महावीर के धर्ममें इनके सिवाय मोक्ष नहीं होता ऐसा कहा है। अतः एव गोशाला नाम मंखलीपुत्रका धर्म श्रेष्ठ-सत्य है। सो तू इसे अंगीकार कर और महावीरके धर्मको झंग मान!" देवकी बात सुन कुंडकोलिकने कहा:-"अहो देव ! तू कहता है कि गौशाला मेखलीपुत्रका धर्म, क्रिया, तप, संयम, आदि के बिना मोक्ष मिले ऐसा उत्तम है और श्रमण भगवान महावीरका धर्म दया, बल, वीर्य और पुरुषार्थ युक्त हैं ठीक नहीं है । तो हे देवताको मिय ! तू ऐसी देवताकी पदवी, ऋद्धि, रुप, और सुख ये सब उत्थानादिक क्रियाएं तप, संयम, बल, तथा पराक्रम विना ही पाया था और किस तरह ? और अब जो जीव उत्थानादि क्रिया तप आदि नहीं करते हैं उनकी मोक्ष होगी या नहीं ?" कुंडकोलियाकी यह बात सुन कर देवको संदेह हो गया और पीछा कुछ भी उत्तर न दे सका। चुपचाप उस अंगुठीको और उत्तरीय वस्त्रको पीछे पृथ्वी.शिलापट्ट पर रखदिये । तथा जिस दिशासे आया था उसी दिशासे चला गया। ' उस काल उस समयमें श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे । इसे सुनकर, हर्प: संतोष पा, जैसे कामदेव श्रावक
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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