SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११४) इसी जगह मन, वचन और कायासे आलोचना कर और मायश्चित ले। .. - चुलणीपियाने माताका कहना मान, वहीं आलोचनाकर मायश्चित लिया। चुलणीपिया आनंदजीकी तरह ११ प्रतिमा आदर और कामदेवजीकी तरह अप.सण कर सुंधर्म देवलोक में साधर्मावतंसक नामा हे विमानके पास इशान कोने में अरुणम्भ नाम विमानमें चार पस्योरमकी स्थितिसे देवता हुआ । वहाँसे महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न होकर मोक्ष पावेगा। सार. कामदेवके चरित्र हम दृढ तन्मयताकी भावनाका चित्र देख चूके, कि जिस तन्मयताके सामने कोई संकट या कोई उच्चगुण भी याद नहीं आता। चुलणीपियाके चरित्रमें भी हम ऐसे ही एक पवित्र पुरुषके जीवनका चित्र देखते हैं, परन्तु इसमें वैसी सम्पूर्ण तन्मयता नहीं है। चुलणीपिया तो धर्मकी पूर्ण स्थितिकी अपेक्षा माताके प्रेमकी ओर अधिक ढल पडा हां, मातृभक्ति अत्यंत प्रशंसनीय बात है, वैसेही पितृभक्ति, कुटुंबपात्सल्य और स्वदेशभक्ति प्रत्येक परोपकारका काम है। परन्तु एक म्यानमें दो तलवार नहींसमा सकती। एक ध्यानमें लगे हुए दिमागर्म दूसरा विचार-फिर वे कितनाही उत्तम क्यों न हो--प्रवेश कर नहीं सकता और यदि प्रवेश करे भी तो ध्यानकी सम्पूर्ण अवस्था नहीं कही जा सकती।
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy