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________________ ( ११३ ) कायासे करके उठा और देवको पकड़नेको ज्योंही खडा हुआ कि देवता आकाश मार्ग से रवाना हो गया । और ' चुलणीपियाने थंभा पकड बडे जोरसे हम्हू करना शुरु कर दिया । उसे सुनकर भद्रा सेठानी वहां आई और कहने लगी कं' हे बेटा ! अभी तूने बढे जोरसे कोलाहल कैसे किया ?' चूलजीरिया बोला- "माना जा कोई आदमी मुझपर गुस्से होकर कमल के फूल जैसी उजली और बिजलोसी चपकती हुई कलवार हाथमें लेकर कहने लगा कि -' हे चुलणीपिया ! तू व्रत नहीं तोरंगा तो तेरे बडे पुत्रको तेरे सामने अभी मैं मारुंगा, उसके मांस के सूळे कर कढाईमें तल उसका लोडी मांस तुझपर छिडगा | इस प्रकार तीन बार कहा परन्तु मैं डरा नहीं । फिर उसने तीनों लडकेको काट कर उसका लोहीमांस मेरे शरीर पर छिडका । मैं फिर भी नहीं डरा और न धर्मसे च्युत हुआ । परन्तु अखीर में उसने, मेरे परम पूज्य माताजी | उसने आपके लिये भी वैसा ही कहा, वे दो बार तो मैंने सहन कर लिया; परन्तु तीसरी वार मुझसे सहन न हो सका । मैं उसे पकडने को दौडा तो वे आकाश मार्ग से उड गया और मैं इस थंभे से लिपट गया और कोलाहल करने लगा " । भद्रा बोली :-- "बेटा ! तेरे तीने पुत्र मौजूद हैं। उन्हें कोई घरसे नहीं ला सकेगा और न मार सकेगा । कोई देव तुझे उपसर्ग करने आया होगा । उसने तेरे व्रत, पञ्चखाण, तप, नियम, सामायिक, पैौषधादि सबका भंग किया है । इस लिये * इस प्रकार जीतने बनाव बनते हैं, वे सब मानसिक सृष्टि की हैं। भतः एष मध्यक्षले कोई विरोध नहीं भावा ।
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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