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________________ ९७ खास आवश्यकता जितनी होगी उससे ज्यादा (शोखके लिये.) काममें नहीं लूंगा. ज्यूं ज्यूं आवश्यकता ज्यादा चीजेंकी होती है यूं त्यूं आत्मा पर बोजा बढता है और खूदका विचार करने की फुरसद कम रहती है, ऐसा समझ कर खानेकी पीनेकी-पोशाककी मर्दनकी-बीछानेकी इत्यादि हरएक प्रकारकी चीजें ज्यु बनेगी त्युं थोडीसे ही चला लूंगा. मैं सादा, आत्मसंयमी और मिताहारी वनूंगा. (८) मुझसे बनेगा वहां तक मन, वचन और कायाको व्यर्थ व्यापारमें न फँसाउंगा। इधर उधरकी खटपट, गप्प, चिंता और कुतर्कमें अपने आत्मतत्त्वको नाश न होने दंगा। भोग विलासकी चीजेपर मूर्छित न बनूंगा। और न किसीका बुरा चिंतूंगा । आत्मक्लेश न होने दूंगा। (९) मुझसे बनेगा वहांतक चित्तका समतोलपन रक्खंगा। तमाम दिन चित्तका समतोलपन न भी रह सकेगा तो भी कमसे कम ४८ मिनिट तो उसके अभ्यासके लिये अवश्य निकालूंगा । इस समयमें 'सामायिक व्रत' पालूंगा। मन, वचन और कायाके योगसे पाप कर्म न करूंगा, न कराउंगा तथा न करतेको भला समझूगा । इन नव 'कोटी मेंसे मुझसे जीतने पल सकेंगे उतने तो अवश्य पालुंगा ही। ___(१०) जहां तक मुझसे हो सकेगा ( ) इतने माइलसे दूरकी वस्तु मेरे भुक्तने के लिये नहीं मंगवाउंगा । अथवा आई हुई वस्तुको उपयोगमें न लूंगा। (यह व्रत स्वदेशभक्तिका है भारतके बाहरसे कोई वस्तु मंगाउंगा नहीं या मंगवाइ होगी तो उपयोगमें न लाउंगा ऐसा नियम करनेसे यह प्रतं भली प्रकार पाला कहा जायगा)।
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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