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________________ ९६ (१) आज मैं किसी प्राणीको इरादापूर्वक इजा करूंगा 'नहीं और अयना यांने दुर्लक्षसे या प्रमादसे किसी प्राणीको हानी न पहुंचे इस वातकी दरकार करूंगा. : ( २ ) आज मैं किसीको कोइ तरहका नुकसान हो ऐसा झूठ वचन नहीं बोलूंगा. हाश्य, परनिंदा, गपसप आदि वाचाके दुरुपयोग के कार्यों से मैं दूर रहने की दरकार करूंगा. (३) आज मैं किसीकी चोरी नहीं करूंगा, फोकटके धनकी इच्छा नहीं करूंगा, व्यापारादिमें उगाई नहीं करूंगा. (४) आज मैं विषयवृत्तिको अंकुशमें रखूंगा. धर्मपत्नी सिवाय और सब स्त्रीयोंसे भगिनी भाव रखूंगा. धर्म पत्नीको भी विषय वासना तृप करने का ही पदार्थ न समझते हुवे बुद्धिपुरस; वासनाका दमन करूंगा. मेरे मनको विषय संबंधी विचारोंसेः आँखाको विषयजनक पदार्थोंसे, जीव्हाको अश्लील शब्दोच्चार से दूर ही रखूंगा. (५) आज मैं परिग्रहमें लुब्ध होनेके स्वभावको अंकुशमें रखूंगा. स्थावर व जंगम जो परिग्रह मेरी पास है उससे ज्यादा जो कुछ प्राप्ति मुझे आजके दीनमें हो, उसमेंसे रु. - कीमतका रख कर दूसरा सब दुःखी जीवांको गुप्त सहायता पहुंचाने में और ज्ञानकी भक्ति करने में व्यय करूंगा. (६) आजके दीनमें, जहां तक हो, - माइलसे ज्यादा, परमार्थके कार्य सिवाय, भ्रमण नहीं करूंगा. (७) आजके दीनमें, उपभोग - परिभोग के पदार्थों बनेगा त्युं थोडेसे ही नीभालूंगा. वस्त्रादि 'परिभोग ' की चीजें और खानपानादि ' उपभोग ' की चीजें ये दोनोकी
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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