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________________ गौत्तमने कहाः “हां, श्रावक ! हो सकता है " । आनन्दने कहाः “सो मुझे हुआ है। पूर्व दिशामें लवण समुद्रमें ५०० योजन देखता हूं और नीचे लोलुचुय नरकवास देखता." गौतमने कहाः " इतना ज्यादा अवधिज्ञान नहीं उत्पन्न हो सकता इस लिये 'मिच्छामी दुक्कडं ' लो यहां ही " । आनन्द योला: " पूज्य ! सच्ची वातका 'आलोयण' नहीं होताइस लिये आप ही 'मिछामी दुक्कड' लो।" फिर गीतमको शंका हुई। वहांसे जल्दी श्रमणं भगवान महावीरके पास आये। भात पानी दिखाया, नमस्कार कर पूछने लगे:"प्रभो! मैं आलोवू या आनन्द श्रावक आलोवे ? भगवानने कहाः . "गौतम ! आनन्दका कहना सही है इस लिये तुम्ह वहीं जा कर आलोवो और प्रायश्चित लेकर आनन्द श्रावककोखमाओ" श्री महावीर स्वामीके वचनको तहत कह कर गौतम स्वामी. आनन्दके पास आये, उन्हें खमाया और 'आलोयण लिया। . आनन्दने वीस वर्ष तक श्रावकपन पाला। श्रावककी ११ मतिमा की । मरणके वक १ मासकी संलेहणा की। अपनी आत्माको निर्मल की। ६० टंक भात पानीका अणसंण छेद,। आलोया, पडिकमा, समाधि संतोष पाया। कालके समय काल कर सुधर्म देवलोकमें सुधर्मवतंस बड़े विमानसे उत्तर पूर्व बीचमें इंशान कौनके अन्दर अरुणाभ विमानमें चार पल्योपमकी स्थितिसे देवता उत्पन्न होंगा। .. ... - गौतमने कहाः "हे भगवन् ! वहाँसे आयुष्य पूर्ण कर आनन्द श्रावक कहां जावेगा ?" भगवानने कहाः " महाविदेह क्षेत्रमें* हो दृढपइनाकी तरह कर्म खपा मोक्ष पावेगा.". : . . : . सार. . श्रावकके १२ व्रत समझाने के लिये यह अध्ययन लिखा * From Theosophic point of view the word .
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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