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________________ काँका पडदा हट गया और निर्मल अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। पूर्व दिशामें लवण समुद्रमें ५०० धनुष्य क्षेत्र देख पडने लगा। दक्षिण पश्चिम की भी यही दशा हुई । उत्तरमें भी चूल हेमवंत और वर्षधर पर्वत तक दिखने लगे । ऊपर सुधर्म देवलोक तफ देख पड़ने लगा और नीचे रत्नप्रभा नरक तक कि जहां चोरासी हजार वर्षकी स्थिति है। बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे । इनके प्रथम शिष्य इंद्रभूति (गौतम) नामक गणधर थे। वह सांत हाथ ऊंचे थे। बडे तपस्वी थे। सम चौरस नाम संठाण और वज्रऋषभनाराच नाय संघयणके धनी थे । सोनेकी तरह उनका शरीर शोभायमान था। कमल कासा गौर वर्ण था। शरीर परसे उन्होंने राग छोड दिया था। तेजस् लेश्याको छिपा दिया था। क्रोध, अहंकार, माया और लोभको जीत लिया था। जाति कुलसे शुद्ध थे। छह छठके पारणे करते हुए विचरते थे। उन्होंने एक दिन छटके पारणेके दिन पहले पहरमें सझाय, दूसरे पहरमें ध्यान किया और वह तीसरे पहरमें भगवान महावीरसे आज्ञा लेकर दुतीपलाश उद्यानमेंसे निकल कर वाणिज्य गांवमें गोचरीको गये। वहां ऊंच नीचं. घरमें अटण करते हुए भिक्षा ले पीछे लौटते हुए कोल्लाग सन्निवेशके पास होकर निकले । वहांपर वहुतसे मनुप्यांका कोलाहल सुना कि आनन्द गाथापतिने इस पोपंधशालामें संलेहणा की है। आनन्द गाथापति जहां सोया हुआ था गौत्तम गये। गौतमको आते हुए देख कर आनन्द गाथापतिने वन्दना नमस्कार किया और कहा कि " पूज्य ! गृहस्थीमें रहते हुए किसी श्रावकको भषधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है या क्या?"
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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