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________________ (३५) जन्मे छते तेणे करेला कर्मने लीधे दारिद्य अने माता प्रमुखनो वियोग यायछे अने तेनी जन्मकुंडलीमां ग्रहो पण सारा आवता नथी. बीजो पुत्र जन्मे छते तेना सुकर्मथी संपत्ति, प्रभुता अने माता वगेरेनुं सुख थायछे अने तेनी जन्मपत्रिकामा ग्रहो पण सारा पडेछे. चोथो प्रकार-- परजन्ममां करेलु कर्म परजन्ममा फलदायी थायछे अर्थात् आ भवर्या करेलु कर्म आ भवमा अथवा वीजा भवमां नहि पण त्रीजा भवमां आत्माने फळदायी थाय छे. दाखला तरीके, कोई आ जन्ममां उग्र व्रत (तपस्यादि) करे पण ते पहेलां ते मनुष्ये, देव अथवा तिर्यचादिना भवनुं टुंकुं आयुष्य बांध्यु होय तो व्रतना प्रभावथी दीर्घायुष्य सहित भोगववा योग्य मोटुं फळ तेने ते पछीना भवमा द्रव्यादि सामग्रीनो तथाप्रकारनो उदय थाय त्यारे प्राप्त शायछे, कोइ पुरुषे कोइ वस्तु सवारे चालशे एम जाणीने ते दिवसे संजोगो जोइने वधारे वापरी न होय अने साचवी राखी होय तोते जेम बीजी वखते भोगवी शकाय तेवीज रीते कर्मनुं पण समजवू. ए रीते चतुर्भङ्गीथी स्वकर्म भोगवायछे एवं आप्तवचन छे. कर्मनुं स्वरूप यथार्थ निवेदन करवाने केवली विना कोइ समर्थ नथी. कर्मो केटला प्रकारनी अवस्थावाला होयछे ? कर्मो त्रण प्रकारनी अवस्थावाळां होय छे. युक्त, भोग्य अने भुज्यमान. शुभ अने अशुभ सर्वने माटे ए सरखुं समजवू. पृथ्वी उपर पडीने सुकाइ गयेलां वरसादनां बिन्दु जेवां युक्त कर्म समजवां. पृथ्वी उपर हवे पछी पडवानां अने सुकाइ जवानां विंदु जेवां भोग्य कर्म समजवां. पडता पडतां सुकाइ जतां विंदु नेवां भुज्यमान कर्म समजवां. अथवा, मुखमां ग्रहण करेला आहारना कोळिया जेवां भुक्त कर्म, ग्रहण करवाना कोलिया जवां भोग्य कर्म अने ग्रहण कराता कोनि
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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