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________________ ( ३२ ) वायना सामर्थ्यथी जीव कर्मोनुं ग्रहण, धारण, भोग अने शमन करे छे अर्थात् जीवो करतां अजीवो सबळ ! छे, जेमनाथी प्रेराइने जीवो सुखदुःखना भागी थाय छे. जीवो शुभाशुभ कर्मोने ग्रहण करेछे अने कर्मो स्वकालमर्यादा पामीने जीवोने सुखदुःख आपेछे - ए एमनो स्वभाव छे. जीव शुभाशुभ कर्मोने ग्रहण करेछे अने ग्रहण करवाना स्वभावथी ग्रहण करतां जाणेछे के हुं स्वाभिप्राय प्रमाणे इष्ट करूंं. ए वात मान्य करवा जेवी छे. परन्तु कर्मो जड होवाथी भोगकाळने केवी रीते जाणे के ते प्रगट थाय ? आत्मा पण शुं दुःख भोगववानो कामी छे के ते दुष्कर्मने आगळ करे ? माटे केटलाक लांबाकाळ सुधी विलंब कर्या पछी कर्मों स्वकर्त्ता जीवने सुखदुःख पमाडे छे ते प्रेरक विना केवी रीते बने ? कर्मो जड छे, निज भोगकाळने जाणता नथी अने आत्मा दुःख भोगववानो कामी नथी तथापि जीव दुःखने आश्रित थायछे अने कर्मो जड छतां द्रव्यक्षेत्रकाळभाव - सामग्रीनी तथाप्रकारनी अनिवार्य शक्तिथी प्रेराइने प्रगट थइ स्वकर्त्ता आत्माने बलात्कारे दुःख देखे, दृष्टान्त तरीके, कोइ पुरुष उष्ण काळमां शीतळ वस्तुनुं सेवन करे अने ते उपर मीठो खाटो करंभ खाय तो तेना शरीरमां वायु उत्पन्न थाय, जे वर्षा रुतु प्राप्त थतां प्रायः अत्यंत कोपायमान थइ शरद् ऋतुनो संयोग थवानी साथे ज पित्तना प्रभावथी प्रायः शान्त थाय. स्वेच्छित भोजनथी वातनी उत्पत्ति, वृद्धि (स्थिति) अने शांति (नाश ) ए ऋण दशाओ थवामां जेम काळ हेतु छे तेम आत्माने कर्मोनुं ग्रहण, स्थिति अने शांति थवामां काळ ज कारण छे. ए रीते आत्माए उपार्जन केरलां कर्मोनो काळे करीने भोग अने शांति थायले तोपण जेम उग्र उपायथी काळ माप्त
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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