SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४) विडम्बित छे. नास्तिकोए सहित अने सर्व मुनीशोए निंदित छे. वितर्कना सम्पर्कवाळा कुतर्कथी कर्कश छे. वर्णाश्रमना भिन्न भिन्न धर्म अने षड्दर्शनना आचारविचार संबंधी आडम्बरे युक्त छे. नाना प्रकारनी आकृतिवाळा देवताओनी एमां पूजा थायछे. पुण्य अने पापथी थता कर्मना भोगने आपनारुं छे. स्वर्गापवर्गादि भवान्तरनो एमां उदय वर्तेछे, श्रीमन्त अने निर्धन, हिंदु अने तुरुष्क ( मुसलमान ) आदि भेदोथी भरेलं छे. एमां केटलाक परब्रह्मनी साथे वैर धारण करनार, केटलाक परब्रह्मनुं खण्डन अने हास्य करनार अने केटलाक परब्रह्मनी पूजाना रागी जीवो होयछे. एनो विस्तार करवाथी शुं? केमके जे देखायछे ते विपरीतज छे. परब्रह्मना खरूपथी तद्दन भिन्न छे.. विद्वानो तो कहेछे के कार्यमा उपादान कारणना गुणो, होवा जोइए. संसारमा जे अनित्य वस्तु देखायछे ते जो सृष्टि समये ब्रह्ममांथी उत्पन्न थइ होय तो योगियो एने जुगुप्सनीय गणी शीघ्र त्यजीने वैराग्य केम लेछ ? जो द्वेषरागादिथी विरूप जगत्स्वरूप उत्तम योगविदोने त्यागवा योग्य होय तो तेजसर्व युगान्ते परब्रह्मने पोतानी अंदर धारण करवा योग्य केवी रीते थाय ? त्यारे क्यांतो ब्रह्ममा विवेक न होय अथवा शुकादि योगियोमा न होय ! जे ब्रह्मने करवा योग्य अने धारवा योग्य ते अन्य पुरुषोने-शुकादि योगियोने निंदवा अने त्यजवा योग्य ! सृष्टि ब्रह्ममाथी उत्पन्न थइ अने प्रलय पण तेमां थशे एवं कहेनार 'ब्रह्म अतिमृढ छे' एवं शुं नथी निवेदन करता ? शुं एमां ब्रह्मने वान्ताहतिनो (वमेलं खावानो) दोष नथी लागतो? लोकमां एकादा ब्राह्मणादिनी घात थाय तो मोटी हत्या थइ कहेवायछे त्यारे सृष्टिनो . संहार की ब्रह्मने ते हत्या केवी लागे ? दयालुने अदया ! स्वरचित सृष्टिनो संहार करतां ब्रह्मने हिंसा न लागे एम जो कहेता हो तो पुत्रोने उत्पन्न करीकरीने मारी नाखनार वापने पण कोइ
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy