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________________ (१४) छट्ठो अधिकार. जीवनो कर्म ग्रहण करवानो स्वभाव छे ते मूलना स्वभावने छोडीने सिद्ध केवी रीते थाय ? जीवनो अने कर्मनो जो के मूळनो (अनादि) संबंध छे तोपण तथाप्रकारनी सामग्री मळवाथी कर्म ग्रहण करवातुं छोडीने जीव शिव पामी सिद्ध थायछे. आ संबंधमां दृष्टांतो सांभळो. पारानो मूल स्वभाव चंचल अने अग्निमां अस्थिर रहेवानो ( उडी जवानो) छे पण तथाप्रकारनी भावना देवाथी पारो वह्निमां स्थिर रहेछे. अग्निमां दाहकतानो मूल स्वभाव छ पण तथाप्रकारना प्रयोगथीमंत्रयोग अथवा औषधीवडे बांधवाथी अग्निमां *प्रवेश, करनारने अग्निदहन करतो नथी, अग्निनुं भक्षण करनार +चकोरपक्षीने अमि पोतानो स्वभाव बदली जवाथी दहन करतो नथी तेमज अभ्रक, सुवर्ण, रत्नकम्बल अने सिद्ध पाराने अग्नि दहन करतो नथी. एवे वखते अग्निमांनी मूलनी दाहकता क्यां जायछे ? लोहचुम्बक पाषाणमां लोह ग्रहण करवानो सहज स्वभाव छ पण ज्यारे अग्निथी ते मृत ( भस्मीभूत ) थायछे अथवा तेना दर्प(प्रभाव) ने हरण करनारी बीजी औषधीथी तेने संयुक्त करवामा आवेछे त्यारे तेनो लोह ग्रहण करवानो स्वभाव नष्ट थायछे. तेज प्रमाणे सिदोमा कर्मयोग जतो रहेछे. धान्य प्रमुखनु वीज ज्यांसुधी तेना मूल स्वभावमा विकार थयो होतो नथी त्यांसुधी धान्यांकुरनी उत्पति करेछे पण ज्यारे ते वीज वळी जायछे त्यारे अंकुरोत्पत्ति *सन्तपुरुपोने अने सतीओने अग्निदहन करतोनथी.-लोकोक्ति. + चकोरपक्षी चन्द्रज्योत्स्नातुं पान करेछे.-विद्धशालभञ्जिका,
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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