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________________ (७३) आज्ञा कैसे दी ? आहार की आज्ञा तो स्थान स्थान पर है इसका उत्तर- शुभ योग आज्ञा में है परन्तु मिथ्यात्व आदि चार आश्रा की आज्ञा नहीं है । वीतराग अव्रती प्रमाद की आज्ञा नहीं देते हैं कोई कहे कि आश्रव तो संयम रोधक है । उसका उत्तर - मिथ्यात्वादि आश्रय संयम रोधक है, परन्तु शुभ योग तो संयम को पुष्ट करने वाला है इसलिए संयम का आश्रय कहा है । कोई कहे कि आश्रय एवं अव्रत तो एक ही है। उसका उत्तर आश्रव के पांच भेद है, इसमें से अव्रत के कितने ? चौथे गुणस्थान में सम्यक्त्व है वह व्रत में है किन्तु दश गुणस्थान में कपाय है वह किसमें ? किसी एक में समाविष्ट नहीं होते हैं अतः दस वोल में सब समाविष्ट हो जाते हैं। दो में नहीं आते दस द्वार का सहस्त्रीभगम माना है अनः दो तो दुर्भिगम, इसलिए साधु के कर्त्तव्य में अबत नहीं लगता है पांचवे गुणस्थान पर्यन्त देश से अत्रत है. वावीश प्रमाद वे आश्रव में है पहिले संजल की चौकडी तथा नो कपाय कहे हैं । ब्रह्म भाव में आवे वे मरण के उदय आने पर ममत्व पन उत्पन्न हो उसे प्रमाद कहते हैं। वह कषाय का ही भेद है. परन्तु यहां अलग गिना है. उसके पांच भेद, मद मान का उदय तेबीस विषय, पांच इन्द्रिय, तीन वेद, रति. अरति, मोह के उदय, कषाय' चार में स्वउदय ३, पांच
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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