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________________ ( ६६ ) निश्चय में छोड़ने योग्य है, योगों का सब व्यापार छोड़ने से मोक्ष जायेंगे, इस कारण से कितने लोग इस प्रकार कहते हैं कि साधु का आहार व्रती में है, यह बात प्रमाण नहीं लगती अतः व्रत का त्याग नहीं करना चाहिये | बल्कि आहार का त्याग करना चाहिये । व्रत तो बहुत करने चाहिए तथा करते हुए हर्षित होना और करने के बाद भी अनुमोदना करते रहना । किन्तु आहार अधिकाधिक नहीं करना चाहिए । श्री उत्तराध्ययन सूत्र के सत्रहवें अध्याय में पाप श्रमण कहा है। आहार करते हुए हर्षित नहीं होवे यदि हर्पित होवे तो चारित्र को अंगारे के समान करता है (सैतालिस दोषों में से मांडला के ५ दोषों में कहा है ) तथा अनुमोदन भी नहीं करे, व्रत करते समय तो इस प्रकार माने कि मैं धन्य हॅ जो व्रत अंगीकार कर रहा हॅू। और जो दूसरे महापुरुष व्रत अंगीकार करते हैं वे भी धन्य है, ऐसा चिंतन करे परन्तु आहार करते समय ऐसा चिंतन नहीं करे । साधु आहार करते समय ऐसा चिंतन करे कि जो महापुरुष आहार का त्याग करते हैं वे धन्य हैं मैं भी जिस दिन आहार का त्याग करूंगा वह दिन धन्य होगा, परन्तु मेरी शक्ति क्षुधा वेदना सहन करने योग्य नहीं तथा आहार छोड़ने पर वैयावच्च आदि करने की शक्ति I
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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