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________________ (५८) एकान्त धर्म पक्ष में नहीं कहा, ब्रतानति कहा इसलिए कसर (न्यूनता) में मिलेंगे दूसरे में नहीं, तथा साधु का दान तो संयम का आधार है । इसलिए वह धर्म है । श्रावक का दान संयमा संयम का आधार है यहां संयम बहुत है अतः यह ज्ञेय पदार्थ है तथा आठ दान मिथ्यात्वी के है वे असंयम के आधार है, इसलिए वे पाप में ही है, वहां अनुकम्पा आदि जो उत्पन्न होती है, वह धर्म का कारण है इस कारण पुण्य भी है, कार्य में पुण्य पाप दोनों लगते हैं । ___ समय की अपेक्षा सव साधु धर्म पक्ष में है तथा उसका दान भी धर्म पक्ष में है, श्रावक धर्माधर्म पक्ष में है उसका दान भी धर्माधर्म पक्ष में है, किसी २ सूत्र में श्रावक को धर्म पक्ष में लिया है, उस अपेक्षा से उसका दान भी धर्म पक्ष में है और क्रिया का करने वाला मिथ्यात्वी, वह भी मिश्र पक्ष में कहा गया है उसका दान भी मिश्र पक्ष में ही है । परन्तु निश्चय नय से उसे अधर्म पक्ष में गिना है, इस अपेक्षा से उनका दान भी अधर्म पक्ष में है, आद्र कुमार ने कहा, ब्राह्मणों तुम्हें जिमाने से नर्क में जाता है' फिर उत्तराध्ययन सूत्र के १४ वें अध्याय की १२ वीं गाथा में भृगु पुरोहित के पुत्रों ने इस प्रकार कहा "भुत्ता दिया, निति तमं तमेणं” इति वचनात् और कुपात्र तो निश्चय व्यवहार दोनों अपेक्षा से अधर्म पक्ष में ही है,
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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