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________________ ( ३६ ) अजीव का चउदहवां भेद- " परमाणु पुद्गल " एक शक्ति के अनंतवे भाग परमाणु छमस्थ के ग्राह्य, सब पुद्गल जाति में जैसे आकाश प्रमाण । द्रव्य से अनंत है। क्षेत्र से एक आकाश में ग्रहित । काल से जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्याता । भाव से एक वर्ण, एक गंध, एक रस, दो स्पर्श मिलते हैं, एक परमाणु के सोलह भांगे होते हैं । सर्व परमाणु राशि में पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध, आठ स्पर्श मिलते हैं। सर्व राशि के २०० भांगे होते हैं, इस प्रकार वस्तुओं के भी द्रव्यादि पांच भेद कहने चाहिए। जिस स्थान में पूछे वहां अजीव के उत्कृष्टा ग्यारह भेद मिलते हैं परंतु किसी भी स्थान में अधिक भेद नहीं होते हैं। पुण्य तत्त्व का परिचय :जीव को पवित्र करे वह पुण्य, इसके दो भेद - १. द्रव्य पुण्य एवं २. भाव पुण्य । द्रव्य पुण्य किसे कहते हैं ? याचक प्रमुख को अन्न वस्त्रादि देवे वह द्रव्य पुण्य कहलाता है तथा देने के भाव परिणामतः भाव पुण्य कहलाता है। जो परिणाम शुद्ध अध्यवसाय अरूपी है, इस परिणाम से अन्न वस्त्रादि देने की क्रिया भी जीव की प्रवृत्ति है, वीर्यांतराय के क्षयोपशम एवं दानांतराय के क्षयोपशम को भी भाव पुण्य कहते हैं । यहां देते समय जो योग्य प्रवृत्ति रहती है उसे भी द्रव्य पुण्य कहते हैं यह रूपी है, देते समय में जो
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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