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________________ (१६५) उपशम चारित्र को उपशमिक कहना, सुनना पांच इन्द्रिय तीन वीर्य, पांच लब्धि, इत्यादि क्षयोपशमिक भाव में है। भवीपन, अभवीपन. ये अनादि पारिणामिक भाव में है। मिद्धपन सादि पारिणामिक भाव में है। यहां कोई पूछे कि अज्ञान एवं मिथ्यात्व को उदय भाव में भी कहा तथा क्षयोपशमिक भाव में भी कहा ? इसका उत्तर-यदि अजानपना रूप अज्ञान, ज्ञानावरणी कर्म का उदय है जिसके उदय से जीव किसी भी वस्तु का पता नहीं लगा सकता है और जो विपरीत जानने रूप अज्ञान है, वह ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम है। कम टूटने से जानपना आता है। ऐसे ही मिथ्यात्व मोहनी का उदय भी मिथ्यात्व सहित है अतः अशुद्धपन होने के कारण अज्ञान कहा है, परन्तु ज्ञान जीव का लक्षण है, अतः मिथ्यात्व मोहिनी का उदय तो उदय भाव में है परन्तु विपरीत श्रद्धना रूप जो विपरीत मिथ्यात्व है वह तो मोहनी पतली(कम)होने से है। श्रद्धा करना जीव का गुण है परंतु विपरीत श्रद्धना यह मिथ्यादृष्टि है जो क्षयोपशम भाव में है, इस प्रकार जीव पांच भाव में है, परन्तु मुख्य नय में जीव द्रव्य पारिणामिक भाव में है । ___ अजीव में धर्माधर्म आकाश, काल ये चार अनादि पारिणामिक भाव में है और पुद्गल स्वयं तो पुद्गलपन की अपेक्षा अनादि पारिणामिक भाव में है, परन्तु इनकी अवस्था प्रमाणुपन इत्यादि सब सादि पारिणामिक भाव में
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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