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________________ (१०२) ↓ कर्म बंधते हैं, दूसरे जीव पर अनुकम्पा करने से तथा उसके दुःख दूर करने से शाता वेदनी कर्म बंधते हैं ऐमा कहा है । परन्तु 'दूसरे को बचाते हुए राग कर्म बांधे' ऐसा वचन यदि किसी स्थान पर हो तो निकाल कर दिखाओ | सूत्र में ऐसा पाठ मिलता ही नहीं है, इसलिये जो ऐसी प्ररूपणा करते हैं वे वीतराग भगवान की आज्ञा के बाहर है, स्वयं स्वच्छन्द रूप से बोलने वाले प्रतीत होते हैं । क्योंकि राग के तीन भेद है १ काम राग वह स्त्री पुरुष का २ स्नेह राग वह माता पुत्र का तथा ३ दृष्टि राग वह मिथ्यात्व से स्नेह करना, इन तीनों प्रकार के राग से जीव कर्म बंधन करता है, परन्तु धर्म राग में पाप नहीं है । ( दूसरे जीव पर अनुकम्पा करते हुए कौनसा राग उत्पन्न हुआ ? क्या वह जीव का सम्बन्धी है ? या कमा कर देगा ? उसका तो दया के प्रति राग है । यदि दया पर राग आने से पाप होता है तो साधु घर पधारते हैं, तव श्रावक को राग उत्पन्न होता है, अतः उसको भी तुम्हारी मान्यतानुसार पाप लगता होगा, राग सहित सूझता आहार पानी देने से भी पाप लगता होगा ? सत्य, शील पर तथा अरिहंत आदि पर राग करते समय भी पाप लगता होगा ? ए ! मित्रों यह तो धर्म राग है, पाप नहीं ।
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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