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________________ को एक 'तो किंचित्कर लिखा नहीं, यदि कहीं पर अकिंचित्कर लिखा भी है तो वह समर्थ उपादान का कार्य नहीं कर सकता इसी अर्थ में लिखा है । समर्थ उपादान के कार्य में वह किसी प्रकार की परमार्थ से सहायता पहुंचाता है, यह तो नहीं है। मात्र समर्थ उपादान ने इस समय क्या कार्य किया, उसका वह सूचक है । इसी अर्थ में उसको (वाह्यनिमित्त की ) सार्थकता है । वैसे श्रसद्भूत व्यवहार से उसकी सहायता से यह कार्य हुआ ऐसा व्यवहार अवश्य होता है । - ११७ कथन नं. ६६ का समाधान :- समीक्षक उपादान के कार्य में सहयोग करती है" उसके इस उठाये थे का जो यह कहना है कि "वाह्य सामग्री कथन को ध्यान में रखकर हमने तीन विकल्प (१) विकल्प एक में हमने पूछा था कि "दोनों (दो द्रव्य) मिलकर एक कार्य करते हैं, यह सहयोग का अर्थ है ।" इसकी समीक्षा करते हुए समीक्षक का कहना है कि "दो द्रव्य मिलकर एक क्रिया नहीं कर सकते, यह तो सामान्यतया निर्विवाद है, परन्तु उपादान और निमित्त दोनों मिलकर इस रूप में स्व-पर- प्रत्यय कार्य सम्पन्न किया करते हैं कि उपादान कार्यरूप परिणत होता है और निमित्त उपादान को उस कार्यरूप परिणत होने में प्रेरक एवं उदासीनरूप से बलाघायक होता है । यह बात पद्मन न्दिपंचविंशतिका के" द्वयकृतो लोके विकारो भवेत्" इस वचन से सिद्ध होती है । "सो उसके इस कथन से तो ऐसा मालूम पड़ता है कि कार्य उपादान में अवश्य होता है, किन्तु उसका कर्ता कोन, इसका उसकी प्रोर से खुलासा दृष्टिगोचर नहीं होता । पद्मनन्दिपंचविंशतिका का उक्त वचन निश्चय - व्यवहार का दोनों नयों की अपेक्षा प्ररूपण करनेवाला है । सो इससे यही सिद्ध होता है कि निश्चयनय से स्वयं उपादान ही अन्य निरपेक्ष होकर अपना कार्य करता है और प्रसद्भुत व्यवहारनय से बाह्य निमित्त को उसका वलाघायक या सहायक आदि कहा जाता है, क्योंकि अन्य द्रव्य की विवक्षित पर्याय को अन्य द्रव्य के कार्य में जो प्रसभूत व्यवहार से सहायक कहा गया है वह कालप्रत्यासत्तिवश हो कहा गया है । अन्यथा परमार्थ से कोई किसी की सहायता नहीं करता, यह निर्विवाद है । (२) विकल्प दो में हमने यह पूछा था कि क्या एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की क्रिया कर देता है - यह सहयोग का अर्थ है "सो समीक्षक ने यह लिखकर कि - इस कथन में कोई विवाद नहीं है" हमारे कथन को स्वीकार कर लिया है। इसका अर्थ समीक्षक ने कि मान लिया है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की त्रिया नहीं कर सकता, तथा वह परमार्थ से दूसरे द्रव्य के कार्य में सहायक भी नहीं हो सकता । (३) विकल्प तीन में हमने पूछा था कि क्या एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की पर्याय में विशेषता उत्पन्न कर देता है, साथ ही इसका खुलासा करते हुए यह भी संकेत कर दिया था कि एक द्रव्य के गुणधर्म जब दूसरे द्रव्य में संक्रमित ही नहीं होते तो यह कहना बनता ही नहीं कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की पर्याय में विशेषता उत्पन्न कर देता है, किन्तु समीक्षक हमारे इस सप्रमाण कथन को पूरी तरह से मानने के लिये तैयार नहीं है । वस्तुतः वह एक द्रव्य के कार्य के प्रेरक और उदासीन निमित्त
SR No.010316
Book TitleJain Tattva Samiksha ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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