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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा अर्थात जो वस्तु सामान्यकी अविवक्षामें विशेषोंसे नहीं के ENही वस्तु सामान्यकी विवक्षासे है । यही सामान्य रीति से प्रमाण ____ अर्थात विशेष नाम पर्यायका है पर्यायें अनित्य होती हैं। इसलिये विशेषकी अपेक्षासे वस्तु अनित्य है । सामान्यकी अपेक्षा से वह नित्य भी है। प्रमाण की अपेक्षा वह नित्यानित्यात्मक है। भाव अभाव पक्ष "अभिनवभावपरिणतेर्योयं वस्तुन्यपूर्वसमयो यः । इति यो वदति स कश्चित् पर्यायाथिकनयेष्वभावनयः ।। ७६४ पंचाध्यायी अर्थात नवीन परिणाम धारण करनेसे वस्तुमें नवीन ही भाव होता है ऐसा जो कोई कहता है वह पर्यायार्थिक नयोंमें अभाव परिणममानपि तथाभूतभावविनश्यमानेपि । नायं पूर्वो भावः पर्यायार्थिकविशिष्टभावनयः ७६५ पंचा० ___ अर्थ-वस्तुके परिणमन करने पर भी तथा उनके पूर्वभावों के विनिष्ट होने पर भी वस्तुमें नवीन भाव नहीं होता है किन्तु जैसा का तैसा ही रहता है यह पर्यायार्थिक भाव नय है। "शुद्धद्रव्यादेशादभिनवभावो न सर्वतो वस्तुनि । नाप्यनाभनवश्च यतः स्यादभूतपूर्वो न भूतपूर्वो वा। ७६६ पंचाध्यापी अर्थ-शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे वस्तुमें सर्वथा नवोन भाव भी नही होता है । तथा प्राचीन भाव भी नहीं रहता है। क्योंकि वस्तु न तो अभूत पूर्व है और न भूतपूर्व है अर्थात् शुद्ध द्रव्यार्थि For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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