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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा wor . अर्थ-उस भ्रम का समाधान यह है कि जो कोई कर्ता होगा वह अपने स्वभाव का ही कर्ता होगा उसका निमित्त कारण मात्र होने पर भी कोई परभाव का कर्ता अथवा भोक्ता नहीं हो सकता है । दृष्टान्त " भवति स यथा कुलालः कर्ता भोक्ता यथात्मभावस्य । न तथा परभावस्य च कर्ता भोक्ता कदापि कलशस्य ! ५७७ पंचाध्यायी श्रथ कुम्हार सदा अपने स्वभाव का ही कर्त्ता भोक्ता होता है वह परभाव कलश का कर्ता भोक्ता नहीं होता । अर्थात् कलश के बनाने में वह केवल निमित्त कारण है। निमित्त होने से वह उसका कर्ता भोक्ता नहीं हो सकता । " तदभिज्ञानं च यथा भवति घटो मृत्तिकास्वभावेन । अपि मृणमयो घटः स्यान्न स्यादिह घटः कुलालमयः " ५७८ पंचाध्यायी अर्थ -- कुम्हार कलश : कर्ता क्यों नहीं है ? इस विषय में यह दृष्टांत प्रत्यक्ष है कि घट मिट्टी के स्वभाव वाला कुम्हार स्वरूप नहीं होता अर्थात् जब घट के भीतर कुम्हार का एक भी गुण नहीं पाया जाता है तब कुम्हार ने घट का क्या किया ? कुछ भी नहीं किया वह केवल उसका निमित्त मात्र है । अत: लोक व्यवहार मिथ्या है। "अथ चेटकर्तासौ घटकारो जनतोक्तिलेशोयम् । दुर्वा भवतु तदा का नो हानिर्यदानयाभासः " || ६६ For Private And Personal Use Only ५७६ - पंचाध्यायी ।
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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