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________________ बाह्य कारण मीमांसा कुम्भकारके व्यापारकी कलश कार्यके होनेमें अपेक्षा रहती है। किन्तु जिनमें कालका अति व्यवधान होता है उन पदार्थों में परस्पर कारणके व्यापारका आश्रितपना नहीं पाया जाता। अतएव उनमें कार्य-कारणभाव नहीं सिद्ध होता। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बाह्य कारणमें कारणता बाह्य व्याप्तिके आधारपर कालप्रयासतिरूप ही स्वीकार की गई है। ४ शंका-समाधान शंका--बुद्धिमान् व्यक्ति अरिष्ट और करतलरेखा आदिके आधारपर आगे होनेवाली घटनाओंका निर्णय कर लेते हैं, अतः इनमें अपनेअपने कार्योंके प्रति कारणता स्वीकार करने में क्या आपत्ति है ? ___ समाधान-बुद्धिमान् व्यक्ति अरिष्ट और करतल रेखा आदिसे आगे होनेवाली घटनाओंका जो अनुमान कर लेते हैं उसके वे ज्ञापक निमित्त हैं, आगे होनेवाली घटनाओंके कारक निमित्त नहीं । शंका-आगममें वेदनाभिभव आदिको नारकियोमें भी सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिका कारण कहा है । परन्तु जिस समय नारकी वेदनासे अभिभूत होते हैं उसी समय उनके सम्यग्दर्शन होनेका कोई नियम तो है नहीं, क्योंकि सब नारकियोमें वेदनाभिभवके साथ सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति होनेका अन्वय-व्यतिरेक नहीं देखा जाता। इसलिये अन्य जिस पदार्थकी दूसरे पदार्थरूप कार्यके साथ कालप्रत्यासति हो वही उसका बाह्य कारण है, अन्य नहीं यह कहना उचित नही है ? समाधान-धवला पुस्तक ६ पृ० ४२३ में इस प्रश्नका समाधान इन शब्दोंमें किया गया है ण वेयणासामण्ण सम्मत्तुपत्तीए कारण, किंतु जेसिमेसा वेयणा एवम्हादो मिच्छत्तादो इमादो असजमादो (वा) उप्पण्णेति उवजोगो जादो, तेसिं चव वेयणा सम्मत्तुपत्तीए कारणं, गावरजीवाणं वेयणा, तत्थ एवं विहउबजोमाभावा । वेदना सामान्य सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण नहीं है । किन्तु जिन नारकियोंके ऐसा ज्ञान होता है कि यह वेदना इस मिथ्यात्वरूप परिणतिके कारण उत्पन्न हुई है या यह वेदना इस असंयमरूप परिणतिके कारण उत्पन्न हुई है उन्हीं नारकियोंकी वेदना सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिका कारण है, अन्य नारकी जीवोंके नहीं, क्योंकि उनमें इस प्रकारके उपयोगका अभाव है।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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