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________________ जेनतत्त्वमीमांसा कारण है कि प्रकृतमें सत्ताको उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप स्वीकार किया गया है। आशय यह है कि सब पदार्थोमें व्याप्त जो यह सत्ता है वह प्रत्यभिज्ञानके कारणभूत किसी स्वरूपसे ध्रुव है और क्रमवर्ती किन्हीं दो स्वरूपोंसे नष्ट होती और उत्पन्न होती है, इसलिये एक ही समयमें एक साथ तीन अंशोंवाली अवस्थाको धारण करती है। यतः भाव और भाववान्में कथञ्चित् अभेद होता है, अतः वह एक है, क्योंकि वह त्रिलक्षणवाले समस्त वस्तुजातमें अनुस्यूत है। यहाँ पर प्रत्येक समयमें प्रत्येक वस्तुको त्रिलक्षणस्वरूप बतलाया है, इस पर यह प्रश्न होता है कि जो वस्तु जिस समय उत्पादस्वरूप है उसी समय वह व्ययस्वरूप कैसे हो सकती है ? समाधान यह है कि पूर्व पर्यायका त्याग व्ययका लक्षण है और उत्तरस्वरूप (पर्याय) को अवाप्ति उत्पादका लक्षण है, इसलिये इन दोनोंमें लक्षण भेद होनेसे भेद अवश्य है। इसी तथ्यको विद्यानन्द स्वामीने अष्टसहस्रीमें इन शब्दोंमें व्यक्त किया है कार्योत्पादस्य स्वरूपलाभलक्षणत्वात् कारणविनाशस्य च स्वभावप्रच्युतिलक्षणत्वात्तयोभिन्नलक्षणसम्उन्धित्वसिद्धेः । पृ० २१० । कार्यकी उत्पत्तिका लक्षणस्वरूपका लाभ है और कारण (निश्चय उपादान) का लक्षण स्वभावका त्याग है, इसलिए इन दोनोंका भिन्नभिन्न लक्षण यह सिद्ध होता है । पृ० २१० । तथापि पूर्वोक्त प्रकारसे उत्पाद और व्यय इन दोनों में समय भेद नहीं है, क्योंकि घट पर्यायका व्यय ही कपालरूप पर्यायका उत्पाद है, इसलिये इन दोनोंका एक समय है तथा जिस समय निश्चय उपादान कारणका व्यय और कार्यका उत्पाद है उसी समय तदवस्थरूपसे द्रव्यका । उन दोनोंमें अन्वय है, इसलिये सत्ता या द्रव्य प्रत्येक समयमें त्रिलक्षणवाली है यह सिद्ध होता है। ___यतः यह सत्ता लोक-और अलोक सहित समस्त पदार्थोंमें व्याप्त है, अतः सर्व पदार्थस्थित है, क्योंकि सत्ताके कारण ही सब पदार्थों में 'सत्' ऐसे कथनकी और 'सत्' ऐसे ज्ञानकी उपलब्धि होती है । यहाँ ऐसा समझना चाहिये कि सत्ता दो प्रकारकी है-एक सादृश्यमूलक सामान्य सत्ता और दूसरी व्यतिरेकमूलक स्वरूप सत्ता । परमाणुसे लेकर आकाश तक जितने भी अपने-अपने व्यक्तित्वको लिये हुए स्वतन्त्र द्रव्य हैं उनका वह स्वरूप है, अतः वह परमार्थभूत है । किन्तु सामान्य सत्ता
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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