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________________ रक हो हो, परन्तु सानुमवरून माचरणको सिमें वह जगमका ही कारण है . ' यह उक कवनका सात्पर्य है। .. मिलको बोरसे प्रान . यह तो बाल प्रसिद्ध है सोच देख उर माहि । । नरदेहीके निमित्त विन प्रिय मुक्ति न जाहि ॥१॥ यह बात प्रसिद्ध है. कि मनुष्य देहके निमित्त बिना जीव मुक्तिको नहीं प्राप्त होता, सो क्यों ? इसे तूं ( उपादान ) अपने मनमें विचार कर देख ॥१६॥ उपादानकी ओरसे उत्तर देह पीजरा जीवको रोक शिवपुर जात । उपादानकी शक्ति सों मुक्ति होत रे भ्रात ॥१७॥ हे भाई! देहरूपी पिंजरा जीवको शिवपुर जानेसे रोकता है' मात्र 'उपादानकी शक्तिसे मोक्ष होता है ॥१७॥ निमितकी मोरसे प्रश्न उपादान सब लीव पं रोकनहारी कौन । जाते क्यो नहिं मुनिमें बिन निमिसके होन ॥१८॥ उपादान तो सब जीवोंमें है, उन्हें रोकनेवाला कौन है ? जब बिना निमित्तके मुक्ति होती है तो फिर वे मोक्षमें क्यों नहीं जाते ॥१८॥ उपाबानकी बोरसे उत्तर उपादान सु अनाधिको उलट रह्यो जगमाहि । सुलटत ही सूबे चलें सिद्धलोकको जांहि ॥१९॥ जगतमें उपादान अनादिकालसे उल्टा हो रहा है, उसके सुलटते ही वह सीधे (सच्चे) मार्गपर चलने लगता है और सितलोकको जाता मिमिलकी बोरसे प्रश्न कहुं अनादि बिन निमित्त ही उलट रह्यौ उपयोग । ऐसी बात न संभव उपाशन ! तुम बोम ॥२०॥ १. देह पिंजरा जीवको रोकता है यह व्यवहार कथन है। बाशय यह है *कि जीव शरीरकी बोर काय करके शरीरममत्व द्वारा स्थय विकारमें रुक जाता है तब वेहपिबारा जीवको बोकता है ऐसा उपचारसे कहा जाता है।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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