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________________ है और उन पदार्थों का असा परिणमन होता है, केवलशान उसी रूपमें जानता है। केवलज्ञान उन्हें परिणमाता हो यह भी नहीं है, और ये परिगमन करते हैं, इस लये केवलज्ञान जानता है यह भी नहीं है, क्योंकि यहाँ " प्रत्येक पदार्थ अपने परिणामना करने में स्वतन्त्र है, वहां केवलमान उनको जानने में स्वतन्त्र है। इससे यह अवश्य ही फलित होता है कि प्रत्येक वस्तुका जैसा परिणमन होता है, उसी प्रकार केवलझान जानता है। । इसीको दूसरे शब्दोंमें यों कह सकते हैं कि जिस प्रकार केवलज्ञान बानता है, उसी प्रकार प्रत्येक वस्तुका परिणमन होता है। इसीलिये फलितार्थ रूपमें भैया भगवतीदासने जो यह वचन कहा है जो जो देखो वीतरागने सो सो होसी वीरा रे । ___ अनहोनी कबहुँ म होसी काहे होत अधोरा रे ॥ सो ठीक ही कहा है। सम्यग्दृष्टिकी ऐसी ही श्रद्धा होती है। तभी उसके जीवनमें वस्तुस्वभावकी हद प्रतीतिके साथ केवलज्ञान स्वभावकी प्रतीति दृढमूल होकर वह उसके उत्थानमें सहायक बनती है। हमें वस्तुस्वभावको दृढ़ प्रतीतिके साथ पर्यायरूपमें ऐसे केवलज्ञान स्वभावकी शीघ्र ही प्राप्ति होओ यही कामना है।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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