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________________ निश्चय-व्यवहारमीमांसा ३३५ रागादि भावोंको मूर्त क्यों कहा गया है, क्योंकि मूर्त मह धर्म पुद्गलोंका है। वह पुद्गलोंको छोड़कर जीवमें त्रिकालमें संक्रमित नहीं हो सकता और जब वह जीवमें संक्रमित नहीं हो सकता तब जिन क्रोधादिभावोंका उपादान कारण जीव है उनमें वह त्रिकालमें नहीं पाया जा सकता। यदि उन भावोंके नैमित्तिक होने मात्रसे उनमें मूर्त धर्मको उपलब्धि होती है तो अज्ञान दशामें भी क्रोधादि भावोंका कर्ता जीव न होकर पुद्गल हो जायगा और इस प्रकार इन भावोंका कर्तृत्व पुद्गलमें घटित होनेसे पुद्गल ही उन भावोंका उपादान ठहरेगा जो युक्त नहीं है। अतएव रागादि भावोंको मूर्त मानकर असद्भूतव्यवहार नयका जो लक्षण किया जाता है वह नहीं करना चाहिये। यह एक प्रश्न है । समाधान यह है कि प्रकृतमें जीवकी रागादिरूप अवस्थासे त्रिकालो ज्ञायकस्वभाव जीव. को भिन्न करना है, इसलिए सब वैभाविक भावोंकी व्याप्ति पुद्गल कर्मोके साथ घटित हो जानेके कारण उन्हें आध्यात्मशास्त्रमें पौद्गलिक कहा गया है। दूसरे उनका वेदन पररूपसे होता है, स्वानुभूतिमें वे भासते नहीं, अत इस प्रकार वे पौद्गलिक हैं ऐसा निश्चित हो जानेपर उन्हें मूतं माननेमें भी कोई आपत्ति नहीं आती, क्योंकि मूर्त कहो या पोद्गलिक कहो दोनोंका एक ही अर्थ है । ये भाव पोद्गलिक हैं इसका निर्देश स्वय आचार्य कुन्दकुन्दने समयप्राभूत गाथा ५० से लेकर ५५ तक किया है। वे गाथा ५५ में उपसंहार करते हुए कहते हैं व य जीवट्ठाणा गुणट्ठाणा य अस्थि जीवस्स । जेण दु एदे सम्चे पुग्गलदचस्स परिणामा ।।५५॥ जीवके · जीवस्थान नही है और न गुणस्थान हैं, क्योंकि ये सब पुद्गलद्रव्यके परिणाम हैं ॥५५।। इसकी टीका करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं • तानि सण्यिपि न मन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेभिन्नत्वात् ॥५५॥ ये जो जीवस्थान और गुणस्थान आदि भाव है वे सब जीवके नहीं हैं. क्योंकि वे सब पुद्गल द्रव्यके परिणाममय होनेसे आत्मानुभूतिसे भिन्न हैं ॥५५॥ यहाँ पर परभावोंके समान रागादि विभावरूप भावोंसे त्रिकाली शायकभावका भेदज्ञान कराना मुख्य प्रयोजन है किन्तु इस प्रयोजनको सिद्धि त्रिकाली ध्रुवस्वभावरूप शायकभाषमें उनका तादात्म्य मानने
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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