SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चय व्यवहारमीमांसा : २० असदभूत म्यबहारनय आगमका वचन है । पराश्रितो व्यवहारनयः • जो परके आश्रय लक्ष्य) से होता है, अर्थात् यह मेरे लिये हितकर है यह अहितकर है इस प्रकारके रुझानसे अन्यके गुण-धर्मको मन्यका स्वीकारता है वह व्यवहारनय है । निश्चयनय जीवको इसी प्रकारके रुझानसे परावृत्त करता है। उससे जीवकी यह श्रद्धा दृढ़ होती है कि न तो अन्य पदार्थ अन्यका भला ही करनेमें समर्थ है और न ही बुरा करनेमें समर्थ है। जो जिस समय होता है वह सब कर्मानुसार ही होता है । कर्मानुसार होता है इसका यह अर्थ है कि इस जीवने स्वयं भला-बुरा जैसा किया है उसका ही यह फल है। द्वात्रिंशतिकामें कहा भी है स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुरा फलं तदीयं लभते शुभाशुभम् । परेण दत्तं यदि लभ्यते स्फुटं स्वयंकृतं कर्म निरर्थकं तदा ॥३०॥ इस जीवने पहले अपने लिये हितकारी या अहितकारी मान कर स्वयं जो जो कार्य किया उत्तर कालमें उसके अनुसार शुभाशुभ फलको भोगता है। दूसरेके द्वारा दिये गये फलको यदि जीव भोगे तो उस समय स्वयं किये गये कर्म निरर्थक हो जाय। पर ऐसा नहीं है, इसलिये यही स्वीकार कर लेना न्यायप्राप्त है कि जब जिस भावसे जो कार्य यह जीव करता है, उत्तर कालमें उसीके अनुरूप फरका भागी होता है ॥ ३०॥ शंका-कर्मका अर्थ प्रकृतमे द्रव्यकर्म करना चाहिये ? __ समाधान-उक्त श्लोकमें 'स्वयम्' पद आया है। उससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि यह जीव जब जैसे परिणाम करता है उसके अनुसार उसका उत्तर जीवन बनता और बिगड़ता है। द्रव्यकर्म तो मात्र माध्यम है जिससे उक्त तथ्यकी सूचना मिलती है। द्रब्यकर्म इस जीवका स्वयं किया गया कार्य नहीं है, वह पुद्गलका किया हुमा कार्य है, अन्यथा इस जीवको अपनी संम्भाल करनेका उपदेश देना निरर्थक हो जायगा। शंका-आगममें तो यह बतलाया है कि मिथ्यात्व आदि परिणामोंके अनुसार द्रव्यकर्मका बन्ध होता है और द्रव्यकमके उदयानुसार जीवको शुभाशुभ फल मिलता है, इसलिये ऐसा मानना आगमसम्मत प्रतीत होता है?
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy