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________________ सम्यक् नियतिस्वरूपमीमांसा २८७ है। उदाहरणार्थ प्रवचनसार गाथा १०१ में आये हुए 'नियत' शब्दका अर्थ आचार्य जयसेनने निश्चित किया है। प्रवचनसार गाथा ४३ में आये हुए नियति' शब्दका अर्थ आचार्य अमृतचन्द्रने 'नियम' और आचार्य जयसेनने 'स्वभाव' किया है। तथा प्रवचनसारकी गाथा ४४ में आये हुए 'नियति' शब्दका अर्थ आचार्य अमृतचन्द्रने 'योग्यता' और 'स्वभाव' तथा आचार्य जयसेनने 'स्वभाव' किया है। प्रतिक्रमणभक्तिमें धर्मको नियतिलक्षणवाला बतलाया गया है। धर्मकी विशेषता बतलाते हुए वहाँ पर लिखा है___ इमस्स णिग्गंथस्स पावयणस्स अणुत्तरस्स केवलियस्स केवलिपण्णत्तस्स धम्मस्स अहिंसालक्खणस्स सच्चाहिट्टियस्स विणयमूलस्स खमाबलस्स अट्ठारससीलसहस्सपरिमंडियस्स चउरासीदिगुणसयसहस्सविहूसियस्स मवबंभचेरगुत्तस्स णियतिलक्खणस्स परिचायफलस्स उवसमपहाणस्स खतिमग्गदेसियस्स मुत्तिमग्गपयासयस्स सिद्धिमग्गपज्जवसाहणस्स...। __ यद्यपि आचार्य प्रभा चन्द्रने अपनी टीकामें नियतिका अर्थ विषयव्यावृत्ति किया है पर उन्होंने जिसे नियति (निश्चय) धर्मकी प्राप्ति हो जाती है वह सुतरां विषयोंसे व्यावृत्त हो जाता है इस अभिप्रायको ध्यानमें रखकर ही फलितार्थ रूपमें यह अर्थ किया है, इसलिए प्रकृतमें उससे कोई बाधा नहीं आती। लगभग इन्ही विशेषणोंके साथ धर्मका लक्षण करते हुए सर्वार्थसिद्धि (अध्याय ९, सूत्र ७) मे भी कहा है____ अयं जिनोपदिष्टो धर्मोऽहिंसालक्षणः सत्याधिष्ठितो विनयमूलः क्षमाबलो ब्रह्मचर्यगुप्त उपशमप्रधानो नियतिलक्षणो निष्परिग्रहतावलम्बनः ।। जिनेन्द्रदेव द्वारा कहा गया यह धर्म अहिसालक्षणवाला है सत्यसे अधिष्ठित है, विनय उसका मूल है,क्षमा उसका बल है, ब्रह्मचर्यसे रक्षित है, उपशमभावकी उसमें प्रधानता है, नियति उसका लक्षण है और परि. ग्रह रहितपना उसका आलम्बन है। यदि हम हिन्दी पद्यबन्ध ग्रन्थोंका आलोडन करें तो उनमें भी निश्चय अर्थमें 'नियत' या नियति' शब्दकी उपलब्धि हो जाती है । छहढालाकी तृतीय ढालमे 'निश्चय' के अर्थ में 'नियत' शब्द आया है। इसलिए किस कार्यकी उत्पत्तिमें उपादान कौन है और उसका बाह्य निमित्त कौन है इसकी निश्चिति 'नियति' शब्द द्वारा ध्वनित होकर भी मुख्यार्थकी दृष्टिसे उस द्वारा निश्चय उपादानका ही ग्रहण होता है ऐसा निर्णय करना
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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