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________________ २५६ जैनतत्त्वमीमांसा स्थितिमता पदार्थानां गति-स्थिती भवत इति चेत्, सर्वे हि गति-स्थितिमन्तः पदार्था' स्वपरिणामैरेव निश्क्येन गति-स्थिती कुर्वन्तीति ।।८९।। यह धर्म और अधर्म द्रव्यकी उदासीनताके सम्बन्धमें हेतु कहा गया है। वास्तवमें (निश्चयसे) धर्मद्रव्य कभी भी जीवों और पुद्गलोंकी गतिमें हेतु नही होता और अधर्म द्रव्य कभी भी उनकी स्थितिमें हेतु नहीं होता । यदि वे दूसरोंकी गति और स्थितिके मुख्य हेतु हों तो जिनकी गति हो उनको गति ही रहनी चाहिए, स्थिति नहीं होनी चाहिए और जिनकी स्थिति हो उनकी स्थिति ही रहनी चाहिए, गति नहीं होनी चाहिए। किन्तु अकेले एक पदार्थकी भी गति और स्थिति देखी जाती है इसलिए अनुमान होता है कि वे (धर्म और अधर्म द्रव्य) गति और स्थितिके मुख्य हेतु नही है। किन्तु व्यवहारनयसे स्थापित उदासीन हेतु है। शंका-यदि ऐसा है तो गति और स्थितिवाले पदार्थोंकी गति और स्थिति किस प्रकार होती है ? समाधान-वास्तवमें गति और स्थिति करनेवाले पदार्थ अपने-अपने परिणामोंसे ही निश्चयसे गति और स्थिति करते हैं। यह पश्चास्तिकाय और उसकी टीकाका वक्तव्य है। इसके सन्दर्भमे नियमसार और तत्त्वार्थसूत्रके कथनको पढने पर ज्ञात होता है कि उन ( नियमसार और तत्त्वार्थसूत्र आदि ) ग्रन्थोंमे जो यह कहा गया है कि सिद्ध जीव लोकान्तसे ऊपर धर्मास्तिकाय न होनेसे गमन नही करते सो यह व्यवहारनय ( उपचारनय ) का ही वक्तव्य है जो केवल निश्चय उपादानके अनुसार गतिकी उतनी योग्यताको प्रसिद्धिके लिए किया गया है क्योंकि मुख्य हेतु तो अपना-अपना निश्चय उपादान ही है। मुख्य हेतु 'कहो, निश्चय हेतु कहो या निश्चय उपादान कहो एक ही तात्पर्य है । स्पष्ट है कि जिस कालमें निश्चय उपादानको जितने क्षेत्र तक गमन करनेकी या जिस क्षेत्र में स्थित होनेकी योग्यता होती है उस कालमें वह पदार्थ उतने ही क्षेत्र तक स्वयं गमन करता है और उस क्षेत्र में स्वयं स्थित होता है । यह परमार्थ सत्य है। परन्तु जब वह गमन करता है या स्थित होता है तब धर्म द्रव्य गमनमें और अवर्म द्रव्य स्थित होने में उपचरित हेतु होता है, इसलिये व्यवहार हेतुके समर्थनमें प्रयोजन विशेषवश यह भी कह दिया जाता है कि सिद्ध जीव लोकान्तके ऊपर धर्मास्तिकाय न होनेसे गमन नही करते । यद्यपि इस कथनमें उपचरित हेतुको मुख्यतासे
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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