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________________ क्रम नियमितपर्यायमीमांसा २३३ शंका- धर्मादिक द्रव्य यदि निष्क्रिय है तो उनकी उत्पाद पर्याय नहीं बनती, क्योंकि घटादिका क्रियापूर्वक उत्पाद देखा जाता है। और sant उत्पाद पर्याय नहीं बनी तो इनकी व्यय पर्यायका भी अभाव हो जाता है और इसलिये सब द्रव्योंके उत्पादादि तीनरूप होनेका व्याघात प्राप्त होता है ? समाधान --- ऐसा नहीं है, शंका- इसका क्या कारण है ? ― समाधान - इनकी दूसरे प्रकारसे उत्पाद पर्याय बन जाती है । क्रिया निमित्तक उत्पाद पर्यायका अभाव होने पर भी इन धर्मादिक द्रव्योंकी अन्य प्रकार से उत्पाद पर्याय स्वीकार की गई है । यथा इतने उल्लेखसे यह स्पष्ट है कि प्रकृतमे धर्मादिक तीन द्रव्योंके सम्बन्धमे ही ऊहापोह हो रहा है । यद्यपि सभी द्रव्योंकी स्वभाव पर्याये धर्मादिक द्रव्योंकी स्वभाव पर्यायोंके समान अनिमित्तक (आश्रय निमित्तोंको गिना नहीं) ही होती हैं, फिर भी प्रकृतमेंधर्मादिक तीन द्रव्य ही विवक्षित हैं। आगे उन तीन द्रव्योकी स्वभाव पर्यायें किस प्रकार होती है इसको बतलाते हुए वहाँ लिखा है द्विविध उत्पाद स्वनिमित्त. परप्रत्ययश्च । स्वनिमित्तस्ता बदनन्तानामगुरुलघुगुणानामागमप्रमाणादभ्युपगम्यमानानां षड्स्थानपतितया बुद्धधा हान्या च प्रवर्तमानाना स्वभावात्तेषामुत्पादो व्ययश्चः । उत्पाद पर्याय दो प्रकारकी होती है - स्वनिमित्तक और परप्रत्ययरूप पहले स्वनिमित्तक कहते हैं--इन तीनों द्रव्योंमें आगम प्रमाणसे स्वीकार किये गये अनन्त अगुरुलघुगुण ( अविभाग प्रतिच्छेद) होते हैं जिनका छह स्थानपतित वृद्धि और हानिके द्वारा वर्तन होता रहता है । अत इनकी स्वभावसे उत्पाद और व्ययरूप पर्याय बन जाती है । इस प्रकार इन तीन द्रव्योंमें स्वप्रत्यय पर्याय कैसे बनती है यह सिद्ध किया । यही बात तत्त्वार्थवार्तिकमें भी कही गई है। साथ ही वहाँ इनमें परप्रत्यय पर्यायका व्यवहार कैसे होता है यह स्पष्ट करते हुए लिखा है परप्रत्ययोऽपि अपवादेर्गातस्थित्यवगाहनहेतुस्यात् । क्षणे क्षणे तेषां भेदात्
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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